देवभूमि उत्तराखण्ड तैं देखौं, उड़िक अनंत आगास सी..जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Tuesday, May 30, 2023
Thursday, January 12, 2023
कतै न कर्यन आस....
कवि सम्मेलना खातिर,
मैकु निमंत्रण आई,
अयोजकुन चिठ्ठी मा,
मैकु बताई,
कुछ मिललु न कर्यन आस,
आप जरुर ऐल्या,
हम्तैं छ पूरी आस,
अपणा कविता संग्रै की,
एक प्रति जरुर ल्हयन,
देखा “जिज्ञासू” जी,
आप जरुर अयन।
आयोजकु तै मैंन बताई,
वे दिन मैंन,
दूसरा कवि सम्मेलन मा जाण,
तख कौथिग भि लग्युं छ,
बारा व्यंजन खाण,
लिफाफु भि जरुर मिन्न,
द्वी हजारा आस पास,
मैं कतै नु ऐ सक्दु,
कतै न कर्यन आस।
28/12/2022
पत्नी का प्यार...
एक कवि की पत्नी,
उसको बहुत सताती थी,
बात बात पर झगड़ा कर,
मायके चली जाती थी।
तंग आकर कवि ने,
पत्नी पर कविता लिख
डाली,
प्रिय पत्नी दुखी हूं,
तुमसे भलि है साली।
उसकी प्यारी सूरत देख,
मन मचल जाता है,
सात फेरे फिरे तुम संग,
यही ख्याल आता है।
संवेदना रखती है,
हाल मेरा पूछती है,
मदहोश होकर,
प्यार से घूरती है।
रहम करो मुझ पर,
पत्नी धर्म निभाओ,
तुम मायके से,
तुरंत लौट आओ।
ज्यादा न सताओ,
बेदर्द हो जाऊंगा,
तुम नहीं आओगी तो,
दूसरा व्याह रचाऊंगा।
पत्नी का मायके से,
तब फोन आया,
लौट रही हूं प्रियतम,
प्यार से बताया।
कवि की जिंदगी में,
तब वसंत छा गया,
बहने लगी प्यार की गंगा,
“पत्नी का प्यार” पा गया।
29/12/2022
मेरा नहीं है दोष....
मित्र हमारे कह रहे थे,
चलो जामणीखाळ,
पीने का मन करे,
ठेका हिंडोळाखाळ।
मित्र की बात सुनकर,
मन हुआ बेहाल,
बहुत दिनों से पी नहीं,
मित्र ने चल दी चाल।
मित्र बोला बैठो भाई,
चलते हैं हिंडोळाखाळ,
जी भरकर आज पीएगें,
ये जीवन है जंजाळ।
मोटर साईकिल उसने रोकी,
आया हिंडोळाखाळ,
ठेके पर ले गया,
तच गया फिर कपाळ।
फिर तो क्या था,
पीते पीते हो गए बेहोश
मित्र मुझे कहना लगा,
मेरा नहीं हैं दोष।
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
कबलाट-1886
12/01/2023
दरकता जोशीमठ...
आज कराह रहा है,
कर रहा करुणा पुकार,
हे! मानव तूने किया,
कैसा अत्याचार?
नृसिंह भगवान की बायीं भुजा,
जब टूट जाएगी,
भविष्य वाणी की गई थी,
भंयकर आपदा आएगी।
भविष्य वाणी सच हुई,
हो गई है शुरुआत,
दरक रहा जोशीमठ,
वर्तमान की है बात।
घर से बेघर हो गए,
जिनका नहीं कसूर,
योजनाकारों की करतूत नें,
कर दिया सबको मजबूर।
सोयी सुंदरी सामनें,
देख रही वर्तमान,
हाथी पर्वत मस्त है,
संकट में नृसिंह भगवान।
अपना उत्तराखण्ड बन गया,
आज आपदा प्रदेश,
दरक रहा है जोशीमठ,
देखो, ब्रह्मा, विष्णु और महेश।
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
कबलाट-1887
13/01/2023
Monday, December 26, 2022
बचपन में पहाड़...
एक पीढ़ी
ने अपना,
बचपन
यूं बिताया,
काम होता
था बहुत,
चैन कम हि पाया।
बंठा लेकर धारे पर,
पानी के लिए जाना,
फिर अपने
खेतों में,
बैलों से हल लगाना।
गांव से बहुत दूर,
प्राईमरी स्कूल
जाना,
मिट्टी पाटी
में फैलाकर,
अक्षर ज्ञान
पाना।
सूती फटे कपड़ों पर,
टल्ले लगाकर
पहनना,
मन में कोई मलाल
नहीं,
सादगी से रहना।
बिजली नहीं
थी तब,
लैम्प जलाकर
पढ़ना,
किताबों
को मन से ,
जी भरकर
रटना।
अगेले से आग जला कर,
चूल्हे जलाए जाते थे,
अगल बगल के परिवार,
आग ले जाते थे।
पगडंडियों पर पैदल ही,
दूर
दूर तक जाना,
नयें
कपड़े पहनकर,
बहुत खुश हो जाना।
ब्यो भंत्तर जब होते,
गांव में रौनक बढ़ जाना,
परदेस से नौकर्याळों का,
बहुत दिनों बाद आना।
सामूहिक श्रमदान करके,
हर काम में हाथ बंटाना,
प्रेम बहुत था आपस में,
सुख दुख में काम आना।
पैसा बहुत
दुर्लभ था,
मन में नहीं कोई मलाल,
“बचपन में पहाड़”
ऐसा था,
मनख्वात थी हमारे गढ़वाल।
जगमोहन
सिंह
जयाड़ा
“जिज्ञासू”
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी: चन्द्रवदनी,
टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।
दूरभाष: 9654972366, 22.12.22
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
जयाड़ा(रावत) दिल्ली के निकट जयाड़गढ़ से आकर उत्तराखंड में बसे। जनश्रुति के अनुसार मलेथा के पास गौड़ चोपड़ा के निकट इन्होंने अपना...