आज उदास छ,
अपणौ की बेरूखी सी,
प्रकृति की मार सी,
जख मनखि कम,
बाँदर अर सुंगर ज्यादा,
जू मनखि वख छन,
प्रकृति की मार सी,
डर्यां, लुट्याँ, पिट्याँ,
ज्यादातर बुढ्या,
जिंदगी का दिन काटणा,
आस औलाद दूर,
आला सैत बौड़िक,
जगवाळ मा जागणा,
बाँजा कूड़ा बजेंदा गौं,
उजड़दि तिबारी,डिंडाळि,
देव्तौं का मंडला, पित्र कूड़ा,
टपरांदा कूड़ा पुंगड़ा,
धम्मद्यान्दु विकास,
धौळ्यौं का न्यौड़ु,
पहाड़ की पीठ फर,
जैमा निछ पहाड़ की आस,
घंघतोळ मा "पहाड़"....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित ४.१०.१२
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प्रकृति की मार सी,
जख मनखि कम,
बाँदर अर सुंगर ज्यादा,
जू मनखि वख छन,
प्रकृति की मार सी,
डर्यां, लुट्याँ, पिट्याँ,
ज्यादातर बुढ्या,
जिंदगी का दिन काटणा,
आस औलाद दूर,
आला सैत बौड़िक,
जगवाळ मा जागणा,
बाँजा कूड़ा बजेंदा गौं,
उजड़दि तिबारी,डिंडाळि,
देव्तौं का मंडला, पित्र कूड़ा,
टपरांदा कूड़ा पुंगड़ा,
धम्मद्यान्दु विकास,
धौळ्यौं का न्यौड़ु,
पहाड़ की पीठ फर,
जैमा निछ पहाड़ की आस,
घंघतोळ मा "पहाड़"....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित ४.१०.१२
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