सोचणु बौडा,
जैका गोरु बाखरा,
चन्न लग्यां,
डांड्यौं मा बथौं,
फर्र फर्र बगणु,
सेळि सी पड़्नि,
जैका तन मन मा....
सोचणु अजौं,
हे कथगा खौलु,
कुजाणि कब आलु,
ऊ निर्भाभि दिन,
यीं धरती तै,
छोड़िक जौलु....
चलि भि जौलु,
भग्यान ह्वै जौलु,
कलजुग छ यू,
लंबी उम्र भी,
भलि नि होंदि,
धार ऐंच बैठि
सोचणु बौडा......
जैका गोरु बाखरा,
चन्न लग्यां,
डांड्यौं मा बथौं,
फर्र फर्र बगणु,
सेळि सी पड़्नि,
जैका तन मन मा....
बहत्तर बग्वाळ,
खैगि बौडा,सोचणु अजौं,
हे कथगा खौलु,
कुजाणि कब आलु,
ऊ निर्भाभि दिन,
यीं धरती तै,
छोड़िक जौलु....
चलि भि जौलु,
भग्यान ह्वै जौलु,
कलजुग छ यू,
लंबी उम्र भी,
भलि नि होंदि,
धार ऐंच बैठि
सोचणु बौडा......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासु”
20.9.2013
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