अब मौळ्यार आलु,
डाळि बुटळ्यौं मा,
कुंगळा पात लगालु,
उत्तराखण्ड की डांड्यौं मा,
बुरांस खिलि जालु,
हिंवाळि कांठ्यौं तैं द्येखि,
ऊं तैं रिझालु.....
फ्यौंलि मैत अयिं छ,
भेळ पाखौं मा,
पुंगड़ौं की बिट्यौं मा,
मुल मुल हैंसणि छ,
हमारा लोक गीतु मा,
कालजई ह्वेक बसिं छ.....
ऋतु मौळ्यार पाड़ तैं,
अपणा रंग मा रंगालु,
डांडी हरी भरी ह्वे जालि,
मनख्यौं का मन मा,
कुतग्याळि सी लगालि,
उत्तराखण्ड की धर्ति,
बणि ठणिक सजि जालि,
जग्वाळ मा छौं,
कब आलु मौळ्यार.......
कौणी कंडाळि जौन खाई,
पाड़ छ्वड़ि ऊद आई,
भलु नि लग्दु अब पाड़,
अब नि रैगि राड़ धाड़....
खुदेड़ु की खुद हर्चि,
घुग्ति ह्वयिं छन ऊदास,
लंगि संग्यौं सी बात कन्ना,
मोबैल आज सब्यौं का पास....
उत्तराखण्डै धर्ति द्यखा,
धै लगौणि छ,
नौट कमै नौट्याळ बणिग्यें,
याद नि औणि छ........
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 16.1.2017
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