कहते हैं अब हम ,
पूरा हो रहा काल,
इंतज़ार है सबको,
आएगा नयाँ साल.
कामना है मन में,
प्यार का पैगाम लाएगा,
साल-२०१० यादें अपनी,
छोड़कर चला जाएगा.
जनकवि "गिर्दा" जी का जाना,
उत्तराखंड साहित्य जगत में,
मायूसी का छा जाना,
बसगाळ-२०१० का,
देवभूमि उत्तराखंड में,
अपना रौद्र रूप दिखना,
पर्वतजनों को सताना,
इस रूप में याद रहेगा,
लेकिन! "अलविदा-२०१०".
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: २८.१२.२०१०
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Tuesday, December 28, 2010
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