प्रवासी उत्तराखंडी,
युवा एवं युवतियों का,
एक सामाजिक, सांस्कृतिक,
शैक्षिक और साहित्यिक मंच,
जिसने वार्षिकोत्सव-२०१० पर,
किया सम्मान,
लोक गायक गुमानी दा,
और चन्द्र सिंह राही जी का,
वो क्षण! मार्मिक था,
जब ९८ वर्ष के गुमानी दा,
मंच पर मौजूद थे.
राही जी का सन्देश था,
अपने बच्चों को,
गढ़वाली और कुमाऊनी भाषा,
ज्ञान जरूर कराएं,
जुड़े रहें पहाड़ की संस्कृति से,
आधुनिकता भी आपनाएँ,
लेकिन! घुन्ता-घुना-घुन,
जैसे विकृत पहाड़ी गीत,
गायककार बिल्कुल न गाएँ.
स्मारिका "बुरांश" का विमोचन,
"म्यर उत्तराखंड " का,
एक अनोखा प्रयास,
जीवित रहेगी संस्कृति,
हम कवि, लेखकों की,
जिसमें होती है आस.
मंच के अध्यक्ष,
प्रिय मोहन दा "ठेट पहाड़ी",
और सभी युवा एवं युवतियों का,
पहाड़ की संस्कृति के लिए,
भागीरथ प्रयास,
बढ़ते रहो अपने पथ पर,
सफल हो लक्ष्य प्राप्ति में,
कवि "जिज्ञासु" को आप में,
दिखती है अनोखी आस.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
("म्यर उत्तराखंड " वार्षिकोत्सव-२०१०,१-जनवरी-२०११,श्री सत्यसाईं इंटरनेशनल सेंटर (ऑडिटोरियम) लोधी रोड,नई दिल्ली )
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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