मेरे मन के भावों को,
कागज पर उतारकर,
कहती है तू,
भाषा का सम्मान करो,
माता पिता,
गंगा और हिमालय,
उत्तराखंड आलय,
इनका आदर करो...
भाषा और संस्कृति,
जब तक आपकी,
जिन्दा रहेगी,
हे कवि "जिज्ञासु",
मैं आपकी प्रिय कलम,
सदा यही कहूँगी....
आपकी और मेरी,
मित्रता कायम रहे,
पहुंचे संदेश जन जन तक,
भाषा और संस्कृति के,
सम्मान और सृंगार का,
आपकी प्रिय मित्र,
कलम यही कहे
अनुभूतिकर्ता: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं कविमित्र श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल जी के
तस्वीर क्या बोले के तहत "लेखनी" के रेखाचित्र पर रचित मेरी ये कविता
दिनांक: 21.12.2012
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