हात मा ह्वक्का धरयुं दादा कू,
खुग्लि फर बैठ्युं नाती,
साज वैन भ्वीं धोळ्यालि,
नाती छ भारी उत्पाती....
बोडाजिन झटट साज उठैक,
नाती की मुंडळी फलोसी,
तेरु दोष क्या छ रे नाती,
मैं ही छौं भारी दोषी...
खित खित हैंसणु नाती अफुमा,
हबरि कौंताळ मचौणु,
प्रिय नाती का पुळ्याट मा,
दादा खुश छ होणु.....
याद करा ऊ दिन आप भी,
जू दादा जी दगड़ि बितैन,
दादा जी आज स्वर्गवासी,
अहा! कख ऊ दिन गैन....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
स्वरचित कविता, सर्वाधिकार सुरक्षित,
दिनांक 11.11.2014.
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