आज बग्त यनु ऐगि,
हमारु पहाड़ भारी ऊदास,
घौ हमारा हि दिन्यां छन,
तौ भी वेका मन मा आस......
हमारा पित्रुन प्यारा पहाड़ कू,
हातु सी श्रृंगार करि,
स्वर्ग मा छन आज ऊ,
हम्न कुछ भि नि करि......
सोचा मन मा अपणा दगड़यौं,
पहाड़ प्यारु घैल छ,
हम निपल्टदा परदेशु मा,
मन मा हमारा मैल छ.....
मन मा हमारा मैल छ.....
जल्मभूमि त्यागि दगड़यौं,
घर कूड़ी बांजा डाळिक,
नौट कमै नौट्याळ बणिक,
क्या पाई मन मारिक.....
देब्ता दोष लगला जब,
तब्त अपणा मुल्क जैल्या,
रखा रिस्ता गौं मुल्क सी,
तख की सब्बि धाणि पैल्या....
बिंगणा नि छौं आज हम,
मन सी भौत पछतौला,
अक्ल आलि हम्तैं तब,
जब घर घाट का नि रौला....
जल्मभूमि मां हमारी,
चला हे दगड़्यौं पहाड़ जौला,
तख सब्बि धाणि ह्वै सकदु,
जिंदगी सुख सी बितौला......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु, सर्वाधिकार सुरक्षित, दिनांक 24.9.2015
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु, सर्वाधिकार सुरक्षित, दिनांक 24.9.2015
बहुत सुंदर रचना जयाड़ा सर जी...
ReplyDeleteNice sir.
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