भारी रौंत्याळु हमारु,
उत्तराखण्ड छ,
ऊंचा डांडौं मा,
बांज बुरांस का बण मा,
बथौं अर ठण्ड छ.....
ज्यु पराण सी प्यारु,
हमारु उत्तराखण्ड छ,
जैकी सुंदरता फर हम्तैं,
भारी घमण्ड छ......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
दिनांक 17.9.2015
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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