तन मन को सताती
दिल्ली की गर्मी के कारण पहाड़ की ओर जाने को मेरे कदम बढ़ ही जाते हैं। मुझे श्री हिमाशुं ढ़ौंढियाल
जी का भगवती तलिया पौड़ी गढ़वाल से भागवत कथा के दौरान कवि सम्मेलन में शामिल होने
का निमंत्रण मिला था। बिना बहाने पहाड़ की
ओर जाना संभव नहीं होता। कवि होने के नाते
जहां भी मुझे निमंत्रण मिलता है, भरसक जाने का प्रयास करता
हूं। श्री राजे सिंह रावत जी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया हम 5 जून को गांव जा
रहे हैं। भगवती तलिया तक उन्हें अपने बीमार
बोडा जी को छोड़ने जाना था। गर्मी बहुत थी,
हमनें 5 जून, 2017 को
रात्रि 11 बजे पहाड़ के लिए प्रस्थान किया।
हमारी गाड़ी दिल्ली से रामनगर की
ओर भाग रही थी। जब हम मुरादाबाद के पास
पहुंचे तो गर्मी से कुछ राहत मिलने लगी।
6 जून,
2017 को लगभग चार बजे हम रामनगर पहुंचे। रामनगर में मेरे साथियों ने कुछ फल खरीदे और
उसके बाद हमनें गर्जिया मंदिर की ओर प्रस्थान किया। पहाड़ का सुहावना सफर शुरु हो चुका था। सुखद अहसास की अनुभूति होती है पहाड़ के चरणों
में जाने पर। सड़क के दोनों ओर सघन वन और
पक्षियों का कोलाहल मन में सुखद अहसास पैदा कर रहा था। दूर से गर्जिया मंदिर को
निहारते हुए हम मोहान पहुंचे। वहां पर
हमें एक हिरन विचरण करता हुआ दिखाई दिया।
सड़क कुछ उबड़ खाबड़
थी साथ ही धूल भी उड़ रही थी। सड़क चौड़ीकरण का कार्य हो रहा था। अगला गंतब्य मर्चुला था। पहाड़ और घाटियों को निहारते हुए हम रामगंगा
पुल पार करके मर्चुला पहुंच गए।
मर्चुला
से धूमाकोट जाते हुए सड़क घुमावदार थी।
कुछ देर बात हम सल्ट महादेव पहुंचे।
रास्ते में साल के पेड़ से नजर आ रहे थे।
सड़क के मोडों को पार करते हुए हम ऊंचाई की तरफ जा रहे थे। कुछ देर चलने के बाद हम खिरड़ीखाल पहुंचे। बरखा शुरु हो चुकी थी और गाड़ी में बैठे हुए
ठंड का अहसास होने लगा। दिल्ली की गर्मी
से दूर पहाड़ पर अति आनंद की अनुभूति हो रही थी।
पहाड़ के उच्च शिखरों पर बरखा नजर आ रही थी। अदालीखाळ पहुंचते ही ठंड से कंपकंपी छूटने लगी
और बरखा भी बंद हो गई थी। आगे बढ़ते हुए
जड़ाऊखांद आया। मैंने अक्सर जड़ाऊखान कहते
हुए मित्रों को सुना था। सर्वत्र हरियाली
नजर आ रही थी। लंबे चौड़े खेत और आम के
पेड़ नजर आ रहे थे। लगभग साढ़े सात बजे हम
धूमाकोट पहुंचे। पिछली बार बीरोंखाल से
मानिला की तरफ जाते हुए किनगोड़ी खाल से मैंने धूमाकोट को देखा था। आज मुझे धूमाकोट देखने का सौभाग्य मिल
गया। धूमाकोट से आगे का स्टेशन लिस्टीखेत
था। अहसास हो रहा था लिस्टिखेत में अवश्य
ही लीसा गोदाम होगा। इसी कारण नामकरण
लिस्टिखेत किया होगा। लिस्टिखेत पहुंचने
पर लीसा डिपो दिखा और मन का संशय दूर हुआ।
अब हम दीबा डांडा की तरफ बढ़ रहे थे।
बांज का सघन वन शुरु हो चुका था।
कहीं कहीं चीड़ के पेड़ भी थे।
छोटी दीबा पहुंचकर हमनें वहां पर एक महिला द्वारा दी गई प्लेट से पिठांई
लगाई और कुछ भेंट भी दी।
दीबा से उतराई का
मार्ग था। घाटी में सुंदर से गांव नजर आ
रहे थे। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के
तहत सुंदर काली सड़क घाटी में दिख रही थी।
हम मैठाणाघाट की तरफ जा रहे थे।
सड़क मार्ग पर अखरोट के बड़े बड़े पेड़ नजर आ रहे थे। सोच रहा था ये पेड़ किसने लगाए होगें और किसके
होगें। कुछ दूर चलने पर मैठाणाघाट की गाड
और विस्तृत घाटी नजर आ रही थी। बीरोंखाल
का क्षेत्र भी नजर आ रहा था। एक जगह रुककर
मैंने संपूर्ण दृश्य अपने कैमरे में कैद किया। उत्तराखण्ड का मैंने खूब भ्रमण किया
है पर ये क्षेत्र मुझे मनमोहक लग रहा था।
रास्ते में एक ड्राईवन ने मेरे मित्र श्री राजे सिंह रावत जी को एक मोबाईल
दिया। किसी महिला का मोबाईल गाड़ी में छूट
गया था। ड्राईवर ने बताया जिस महिला का ये
मोबाईल है वो सड़क पर खड़ी है और हमनें उन्हे संदेश दे दिया है। मैठाणाघाट पर करते ही चढ़ाई का रास्ता था। सड़क पर वो महिला मिली और उन्हें श्री राजे
सिंह रावत ने उनका मोबाईल दिया।
दिल्ली से राजे सिंह
रावत जी के 90 वर्षीय बोडा जी पीछे की सीट पर लमतम लेटे हुए थे। जब जब उनका मन करता तो वो कुछ कहते जा रहे
थे। बोडा जी को रावत जी दिल्ली इलाज के
लिए ले गए थे। बोडा जी को दिल्ली में बहुत
गर्म लगा और बेचैनी के कारण हात पैर पटक रहे थे।
अब हम बीरोंखाल की तरफ चढ़ाई की ओर अग्रसर थे। रावत जी से मैंने सिसंई गांव के बारे में पूछा
तो उन्होंने बीरोंखाल के पास नीचे घाटी की ओर इशारा करके गांव दिखाया। उस गांव से गुजरती हुई सड़क दुगडडा की ओर जा
रही थी। लगभग 9 बजे हम बीरोंखाल
पहुंचे। वहां पर श्री रावत जी की दीदी जी
की चाय की दुकान और भोजनालय है। हम दुकान
में गए और चाय पी मठठी खाई। रावत जी ने
कुशल क्षेम लेने के बाद आगे जाने के लिए मुझे गाड़ी में बैठने का संकेत किया।
उतराई का मार्ग था और
हमारी गाड़ी स्यूंसी की ओर भाग रही थी।
गाड़ी में बैठे हुए मैंने डुमैला और स्यूंसी की तरफ की तस्वीरें अपने कैमरे
में कैद की। नयार घाटी बहुत ही सुंदर लग
रही थी। दूर दूर दिख रहे गांव और
सीढ़ीनुमा खेत मनमोहन लग रहे थे। स्यूंसी के सामने बंगार गांव अति सुंदर लग रहा
था। कुछ देर बार हम अरकंडाई के पास पुल से
सीधे ही चौखाल की तरफ आगे बढ़े। पिछले
भ्रमण के दौरान मैंने बैजरों बजार तक भ्रमण किया था। बजार से नदी के पार हम कनेरा गांव की तरफ जा
रहे थे। जंगल के बीच से गुजरते हुए अति
सुंदर लग रहा था। एक पुल पार करने के बाद
कनेरा गांव आया। वहां पर मैंने श्री
उपेन्द्र पोखरियाल जी का गेस्ट हाऊस गाड़ी से गुजरते देखा। जगंल में मेरी नजरें
काफल के पेड़ निहार रही थी। सोच रहा था
पहाड़ आया हूं तो काफल जरुर खाऊं। काफल
नजर नहीं आ रहे थे और हम चौखाळ की तरफ बढ़ते जा रहे थे। सुबह के दस बज चुके थे और हम
भगवती तलिया के ऊपर चौखाळ पहुंच गए। चौखाळ
से भगवती तलिया की घाटी मनोहारी लग रही थी।
इतनी सुंदर घाटी मैंने पहाड़ पर पहली बार देखी।
कुछ समय चौखाळ में
रुककर हम भगवती तलिया जाने वाले सड़क मार्ग पर चल दिए। नीचे घाटी में गाड़ के किनारे शिव मंदिर दिख
रहा था। सोच रहा था अगर संभव हुआ तो दर्शन करने जाऊंगा। धीरे धीरे हमारी गाड़ी एक पुल पार करते हुए
आगे बढ़ी। भगवती तलिया का विस्तृत मैदान
दिख रहा था। श्रीमद भागवत कथा का रंगीन
पंडाल दूर से दिखाई दिया। लगभग 12 बजे दिन
में हम भगवती तलिया पहुंचे। कुछ देर रुकने
के बाद हम आगे कमल्या गांव के लिए चल दिए।
सड़क कच्ची थी और हमारी इनोवा गाड़ी मजबूत। सड़क में गढ़ढ़े होना स्वाभाविक था। हिंसर खूब पकी हुई थी और सोच रहा था वापस लौटते
बग्त हिंसर खाऊंगा। गाड़ी में बैठे दो
सज्जन जो हमारे साथ दिल्ली से आए थे, उन्हें उनके
गांव छोड़कर हम वापिस लौटे। रास्ते में
बंदरो के झुण्ड नजर आ रहे थे। पिछली सीट
पर लेटे बोडा जी भी परेशान थे। कुछ न कुछ
बोल ही रहे थे। लौटते बग्त हम हिंसर तो
नहीं खा सके और भगवती तलिया मैदान में पहुंचे।
श्री हिमाशुं
ढ़ौंढ़ियाळ जी से मेरी मुलाकात हुई। अब
हमें बोडा जी को उनके गांव छोड़ना था।
वहां पर एक नेपाली और एक स्थानीय नौजवान से बात की और वे बोडा जी को पीठ पर
बिठा कर गाड़ के किनारे चलते हुए पुल पार करके ले जाने लगे। बोडा जी कुछ कदम बाद रुकने को कह देते। चढ़ाई चढ़ने के बाद हम बोडा जी के घर पर
पहुंचे। बोडा जी अब अपने चौक में थे और
उनकी बेचैनी अब कुछ शांत थी। बेड़ुवा गांव में चाय नाश्ता करने के बाद हमनें भगवती
तलिया के लिए प्रस्थान किया। गंतव्य स्थल
पर पहुंचने के बाद श्री राजे सिंह रावत जी ने गाड़ी को बीरोंखाळ की ओर मोड़ा और
मैं श्री हिमाशुं ढ़ौंढ़ियाळ जी के साथ उनके निवास पर गया। मैं एकांत ढू़ढ रहा था
पर हलचल बहुत थी। तीन बजे के लगभग कथा शुरु हुई।
कथावाचक श्री जगतनयन बहुतखण्डी जी थे। मुख्य अतिथी के रुप में मेरा स्वागत
हुआ जिसके लिए मैं आयोजक समिती का हृदय से आभारी रहा। हिमाशुं जी के पिताजी श्री
जगदीश ढ़ौंढ़ियाळ जी समय समय पर मेरी खूस खबर ले रहे थे। सांय लगभग सात बजे कथा का समापन हुआ। रात्रि को
हमनें भोजन किया, कथा वाचक श्री बहुतखण्डी के पिताजी और मुझे
श्री हिमाशुं जी ने श्री मान सिंह नेगी जी के घर पर सुलाया। रात्रि में सफर के दौरान सो न पाने के कारण
गहरी नींद आई।
सुबह होने पर मुझे श्री मान सिंह नेगी जी की पत्नी श्रीमती कल्पेश्वरी देवी जी
ने चाय और पकोड़ी मुझे दी। वहीं मैंने स्नान किया और उसके बाद मैं कार्यक्रम स्थल
की ओर चल दिया। अब मुझे एकांत ठिकाना मिल
गया था। जब इच्छा होती तो श्री नेगी जी के
घर आ जाता। दिन में भोजन के उपरांत कथा
शुरु होने से पहले कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ।
हर दिन कथा से पूर्व कुछ न कुछ सांस्कृतिक अयोजन जारी था। मुझे एक बुजुर्ग मिले, उनसे
भगवती तलिया के बारे में जानकारी ली। उन्होंने
बताया इस जगह को शून्य खर्क कहते थे। बहुत
समय पहले यहां के कुछ नागरिक ढ़ाकर(रामनगर) गए थे। वापसी में एक आदमी तबियत ठीक न होने के कारण गर्जिया
देवी के पास रुक गया। अन्य साथी आगे चले गए
थे। कुछ देर बाद उसने भगवती तलिया के लिए प्रस्थान
किया। उसका सामान हल्का हो गया और आगे पहुंच
चुके आदिमयों से पहले यहां पहुंच गया। उसके
सामान में एक पत्थर सामान खोलने पर मिला। स्वप्न
में उसे भगवती ने दर्शन दिए और अपना मंदरि स्थापित करने को कहा। उस व्यक्ति ने आज्ञानुसार भगवती तलिया को स्थापति
करके मंदिर बनवाया। कवि सम्मेलन का
आयोजन इसी क्रम में किया गया था। कवि
सम्मेलन में एक कवियत्रि और चार नवोदित कवि मौजूद थे। आयोजन से पूर्व मैंने मंच से गढ़वाळी भाषा के
प्रसार के संबध में अपने मन की बात व्यक्त की।
अंतिम क्रम में मैंने अपनी गढ़वाळी कविताए सुनाई। कवि सम्मेलन के बाद कथा
आरंभ हुई। हमें कथा वाचक श्री जगतनयन
बहुखण्डी जी से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
सांय सात बजे तक कथा हुई। स्थानीय लोग बड़ी संख्या में कथा सुनने आए थे। कथा समाप्ति के बाद प्रसाद वितरण हुआ।
सांय को मैं श्री नेगी जी के घर गया। दरवाजे बंद थे, मैंने अपने कमरे का दरवाजा खोला और वहां पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद श्रीमती कल्पेश्वरी देवी आई और मेरे लिए चाय बनाई। उन्होंने मुझे बताया हमारा घर पहले गांव में था। एक दिन बरखा हो रही थी, संध्या का समय था। मुझे अहसास हुआ हमारा घर गतिमान हो गया है। मैंने बताया भी लेकिन किसी ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। अचानक घर के पीछे से मलवा आया और लेंटर को तोड़ते हुए घर के अंदर घुस गया। मैं और मेरी लड़की घर से बाहर भागे। मलवा आ जाने के कारण दरवाजे खिड़की बंद हो गए थे। मैं अपनी रसोई में गई और मैंने कुल्हाड़ा लाकर दरवाजे उपर से काट दिए। लड़की को गांव में भेजा। तुरंत ही गांव से लोग आए और मलवे में धंसे परिजनों को बाहर सुरक्षित निकाला गया। उन्हें हल्की चोटें आई थी। कुछ समय बाद वे ठीक हो गए। श्रीमती कल्पेश्वरी देवी जी की आप बीती सुनकर मुझे दु:खद अहसास हुआ। कुछ समय बाद मैं और कविमित्र श्री संदीप बलोदी कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। वहां पर भोजन के बाद हम मंच पर बैठे। कुछ भजन संगीत का आनंद लेने के बाद हम श्री नेगी जी के घर आकर सो गए। साने से पूर्व श्री हिमाशुं जी से बात हुई। उन्होंने बताया सुबह बैजरों तक मैंने आपके लिए गाड़ी का इंतजाम कर दिया है। सुबह 4.30 पर आप प्रस्थान करना। ये व्यवस्था इसलिए की गई कि मुझे सुबह 6 बजे सतपुलि के लिए बैजरों से बस लेनी थी। सतपुलि से मुझे डांडा नागराजा के निकट नवाड़ी गांव में श्री राजेन्द्र सिंह नयाळ जी को मिलने जाना था।
दिनांक 8 जून, 2017
को सुबह चार बजे मेरी नींद टूटी।
मैंने श्री बलोदी जी का उठाया और हात मुंह धोकर तैयार हुए। श्री हिमाशुं जी
के पिताजी हमारे पास पहुंच चुके थे। श्री
मान सिंह नेगी जी ने मुझे और बलोदी जी को परंपरा के अनुसार पिठाईं लगाकर हमें विदा
किया। उन्होंने हमारा जो मान सम्मान किया
हम उनके हृदय से आभारी हैं। लगभग सुबह के
4.45 बज चुके थे, हमनें बैजरों के लिए प्रस्थान किया। मां भगवती तलिया को प्रणाम करते हुए हम चौखाळ
की तरफ चल दिए। हमें लगभग 25 किलोमीटर का
सफर तय करके बैजरों पहुंचना था।
गाड़ी खाली सड़क पर
रफ्तार से भाग रही थी। सुबह लगभग 5.45 पर
हम बैजरों पहुंचे। बलोदी जी ने बीरोंखाळ
की बस ली और मैं बस की इंतजार करता रहा। सुबह
छ बजे थालीसैण से हिमगरी बस आई और मैं उसमें बैठ गया। सफर लगभग तीन घंटे का
था। इस सड़क पर मैं तीसरी बार यात्रा कर
रहा था। फरसाड़ी गांव आने पर मुझे
कविमित्र बिरेन्द्र जुयाळ जी की याद आई क्योंकि ये उनका गांव था। हिमगरी बस रफ्तार से भाग रही थी। बेदीखाळ, पोखड़ा होते
हुए हम जा रहे थे। पोखड़ा में जनेरा गांव
में साहित्य रत्न स्व. विमल कंडारी जी का गांव दिख रहा था। हमारी बस में रास्ते में कुछ लोग चढ़ उतर रहे
थे। कुछ तो पहाड़ आए कठमाळी गढ़वाळि
थे। पहनावा शहरी और अंदाज भी शहरी। संगलाकोटी
के बाद घुंघ्या बैण्ड पर हमारी गाड़ी पुल पार करती हुई सतपुलि की तरफ जा
रही थी। कंडक्टर साहब ने गीत संगीत शुरु किया। गोपाल बाबु गोस्वामी जी का गीत था रुप्सा रमोती
घुंघरु न बाजा छमा छम्म, राही जी का गीत था सौलि घुराघुर
दगड़्या। गीतों का आनंद लेते हुए हम
सतपुलि पहुंचे।
बस से उतरकर मैं उस
स्थान पर गया, जहां से भण्डालू और नवाड़ी की जीपें जाती
हैं। समय सुबह 9 बजे का हो गया था। वहां
पर मैंने पता किया तो श्री गणेश जी की गाड़ी को 12 बजे जाना था। एक सज्जन मुझे मिले, बता
रहे थे सुबह छ बजे से यहां खड़ा हूं। गणेश
जी की गाड़ी में हमनें अपना सामान रखा और जाने की इंतजार करने लगे। सतपुलि में गर्मी बहुत थी, सोच रहे थे कब बारह बजें और हम यहां से जाएं। लगभग ग्यारह बजे एक जीप वाला आया, उसने हमें बताया मैं जगसारी तक जा रहा हूं। हमनें गणेश जी की गाड़ी से सामान निकाला और उस
जीप में बैठ गए। जीप ने चलना शुरु किया, तब जाकर कुछ चैन
मिला। बांघाट के पास हंस फाऊन्डेशन का
अस्पताल दिखा जो भव्य था। जिसका निर्माण
कार्य आज भी जारी है। बिलखेत, बाड़्यौं होते हुए हम बेहड़ाखाळ पहुंचे।
बेहड़ाखाळ से फिर हम भण्डालू गए, वहां की सवारियों को
छोड़ने के बाद हमारी गाड़ी डांडा नागराजा मार्ग से होती हुई नवाड़ी गांव के ऊपर
पहुंची। मैं वहां पर उतर गया, ड्राईवर ने मुझे से 150 रुपये लिए।
वहां से मैंने श्री राजेन्द्र नयाळ जी को फोन करके पहुंचने की सूचना दी।
मैं उनके बताए रास्ते पर उतरने लगा। रास्ते में कुछ नेपाली एक बड़ा सा बिजली का
ट्रांसफार्मर कंधे के सहारे ले जो रहे थे।
मैंने तुरंत उनकी एक तस्वीर अपने कैमरे में कैद की। श्री नयाळ जी मुझे नीचे दिख रहे थे। पास पहुंचकर मैंने श्री नयाळ जी को गले
लगाया। ये मुलकात हमारी लगभग सात साल बाद
हो रही थी। पहले श्री नयाळ दिल्ली में ही
रहते थे। नयाळ जी का घर सबसे ऊपर एकांत में था।
भूख का अहसास हो रहा था। नयाळ जी ने
प्रेशर में भात चढ़ाया। दाल बनाने को कह रहे थे लेकिन मैंने मना कर दिया। सामने ही पहाड़ी आलू रखे थे। सिलवट्टे में थींच
कर थिंच्वाणि बनाया। भोजन करने के बाद हम
नीचे गांव में गए। वहां हमें एक देशी आड़ू
का पेड़ नजर आया। आड़ू पके हुए थे, दो
आड़ू खाने का सौभाग्य मिला। कुछ देर बाद हम वापस लौट गए। रात्रि
में फिर दाल थिंच्वाणि और भात खाया और उसके बाद हम सो गए।
सुबह उठकर हम दोनों भण्डालू गए।
नवाड़ी गांव से कुछ देर चलने के बाद डंगळधार से पहले हमें सड़क पर एक धारा
दिखाई दिया। धारे पर आ रहे पानी का श्रोत
एक बांज के पुरातन पेड़ की जड़ से था।
पहाड़ आने पर बांज की जड़ का ठंडा ठंडा पानी पीने का सौभाग्य मिलि ही गया।
भण्डालू पहुंचने पर मैं नयाळ जी और मुकेश नेगी ब्यासघाट के ऊपर एक धार पर गए। वहां से ब्यासघाट का बाजार तो नहीं दिखाई दे
रहा था। जिंदगी में पहला मौका था ब्यासघाट
की तस्वीरें लेने के। वहां से मैंने
ब्यासघाट, अमोल, किंनसुर, हतनूड़ की
तस्वीरें ली। उस धार पर गांव वालों ने
अपनी जमीन अंग्रेजों को बेच दी है।
उन्होंने वहां पर भवन निर्माण किया है जो अब भी जारी है। गांव के ही कुछ लोग वहां पर काम कर रहे
थे। कहते हैं लोग पहाड़ पर कुछ नहीं
है। अंग्रेजों ने तो जंगल में मंगल कर
दिया है। कुछ देर बाद हम भण्डालू आ गए।
नाश्ता करने के बाद हम नवाड़ी के लिए चल दिए और शाम को फिर आने को कहा।
नयाळ जी तेज कदमों से भाग रहे थे। सुबह के साढ़े नौ बज चुके थे। नयाळ जी को अपनी बकरियां जंगल ले जानी थी। बकरियां उनके जानकार बालक जंगल में ले जा चुके
थे। मैं उनके घर पर गया और नयाळ जी जंगल
में चले गए। मैंने स्नान किया और अपने कपड़े धोए।
कुछ देर बात भात बनाया। आंगन के
पास ही कंडळी के झाड़ थे। पहाड़ जाऊं और
कंडाळी न खाऊं ऐसा कैसे हो सकता है। मैंने
कंडाळी निकाली और आलू के थिंच्वाणि में कंडाळी ऊबालकर मिलाई। दिन के एक बजे नयाळ जी जंगल से आए। हमनें भोजन किया और आराम करने लगे। लगभग तीन बजे खूब बरखा लग गई। भण्डालू से मुकेश का फोन आया, नयाळ जी ने बताया बरखा लगी है। भण्डालू
कैसे आएं। सांय पांच बजे आसमान साफ हो गया। धूप लग गई तो मैंने नयाळ जी को कहा अब भण्डालू चलते
हैं। हमनें भण्डालू के लिए प्रस्थान किया। पैडुल गांव के पास सड़क से एक पुरातन सेमल का पेड़
दिखाई दे रहा था। उसको मैंने सुबह अपने कैमरे
में कैद किया था। पेड़ कोई दो सौ साल से भी
ज्यादा पुराना लग रहा था। रात्रि में भण्डालू में भोजन किया और रात बारह बजे
तक बातचीत में व्यस्त रहे। सतपुली जाने वाला
टैक्सी ड्राईवर बता रहा था सुबह पांच बजे निकलना है।
10 जून, 2017 को सुबह चार बजे मेरी नींद टूटी। हम जाने के लिए तैयार हुए। टैक्सी में बैठकर हम जगसारी की तरफ गए। ड्राईवर को वहां से सवारी लेनी थी। टैक्सी ड्राईवरों की गर्मी के मौसम मा चांदी बन
जाती है और मनमाना किराया वसूलते हैं। जगसारी से हम बेहड़ाखाळ की तरफ जा रहे थे। नयार घाटी में बादलों का सागर नजर आ रहा था। मैंने नजारा अपने कैमरे में कैद किया।
बाड़्यौं बांघाट होते हुए हम 7.30 बजे सुबह सतपुली पहुंचे। कोटद्वार के लिए एक बस खड़ी थी। कंडक्टर से पूछा कितने बजे पहुंचाएगी। उसने बताया नौ बजे कोटद्वार पहुंच जाएगें। सवारियां भर जाने के बाद उसने गुमखाळ की तरफ प्रस्थान किया। सतपुली में डीजन लेना चाह रहा था पर नहीं मिला। बस गुमाखाळ की तरफ भाग रही थी। गुमखाळ से सौ मीटर चलने के तेल न होने के कारण गाड़ी खड़ी हो गई।
कंडक्टर हटणियां बैण्ड जाकर डीजल लाया। गाड़ी स्टार्ट होने में समय लग गया और उसके बाद गधा चाल में गाड़ी कोटद्वार के लिए चल दी। लगभग 11.45 दिन में मैं कोटद्वार पहुंचा। उत्तर प्रदेश परिवहन की बस पहुंचते ही दिल्ली के लिए मिल गई। सांय लगभग 5.30 पर मैं दिल्ली पहुंच गया।
बाड़्यौं बांघाट होते हुए हम 7.30 बजे सुबह सतपुली पहुंचे। कोटद्वार के लिए एक बस खड़ी थी। कंडक्टर से पूछा कितने बजे पहुंचाएगी। उसने बताया नौ बजे कोटद्वार पहुंच जाएगें। सवारियां भर जाने के बाद उसने गुमखाळ की तरफ प्रस्थान किया। सतपुली में डीजन लेना चाह रहा था पर नहीं मिला। बस गुमाखाळ की तरफ भाग रही थी। गुमखाळ से सौ मीटर चलने के तेल न होने के कारण गाड़ी खड़ी हो गई।
कंडक्टर हटणियां बैण्ड जाकर डीजल लाया। गाड़ी स्टार्ट होने में समय लग गया और उसके बाद गधा चाल में गाड़ी कोटद्वार के लिए चल दी। लगभग 11.45 दिन में मैं कोटद्वार पहुंचा। उत्तर प्रदेश परिवहन की बस पहुंचते ही दिल्ली के लिए मिल गई। सांय लगभग 5.30 पर मैं दिल्ली पहुंच गया।
बहुत सुंदर वृतांत
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