कख लगौण छ्वीं….
ज्वानि जळिगि
बुढ़ापु
ऐगि,
कटणा दिन रात,
खाई कमाई जिंदगी मा,
बिंगि नि सक्यौं बात....
जिंदगी अपणि ह्वन्दि,
जन भी यीं बितावा,
सगोर सी काटा जिन्दगी,
मनखि बणि जावा....
हात गौणा चन्ना छन,
जिंदगी लगणि प्यारी,
जिंदगी मा यनु भी ह्वन्दु,
जब ऐ जान्दि लाचारी.....
हमारी जिंदगी मा रन्दि,
सदानि खैंचा ताणी,
भेद यीं जिन्दगी कू,
कैन कब्बि नि जाणी.....
कख लगौण छ्वीं,
जिंदगी का दिन कटेणा,
सुख की स्याणि सदानि ह्वयिं,
दु:ख गौळा भेंटेणा.....
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
20/6/2017
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