मन
तैं सकून देन्दन,
जौंका
चरण मा बग्दिन,
पवित्र
धौळि गंगा-जमुना,
च्वंट्यौं
मा चमक्कदु,
सुखिलु
चमकिलु ह्युं।
बदन
मा जौंका धारण कर्यां,
हरा
भरा बण,
पीठ
फर जौंका झूमदन,
बांज, बुरांश अर देवदार।
बाटौं
फुंड हिटदा बट्वै,
पौन्दन
प्रकृति कु प्यार,
द्यखदन
डांडी-कांठी,
मन
मा पैदा ह्वन्दु उलार।
मनखि
ब्वल्दन,
बल
जिंदगी पहाड़ ह्वेगि,
पर
पहाड़ अति प्यारा,
यीं
दुन्यां मा अति न्यारा।
जुगराजि
रै पहाड़,
त्वेन
बीर भड़ द्येखि ह्वला,
आपकु
रैबार हम्तैं,
उत्तराखण्ड
की जै ब्वला।
जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
रचना: 1631
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