बाळापन
बिटि ब्वल्दु मनखि,
अपणि
प्यारी बोली-भाषा,
ब्वे-बाब
सिखौन्दा छन,
ज्व
हमारी सदानि आसा।
बीर-भड़ु
की भाषा रै,
शब्द
स्वाणा रच्यां बस्यां,
भाषा
हमारी विरासत भी,
त्रिस्कार
कब्बि न कर्यां।
शब्द
कु असर द्यखा,
डरखु
कु ब्वल्दा स्याळ,
एक
गौळा रड़ि जू,
वेकु
नजर औन्दा भ्याळ।
नाचणौं
ज्यु करदु जैकु,
वेकु
ब्वल्दा छन नचाड़,
नाचणौं
कु मण्डाण लगौन्दा,
जख
हमारु प्यारु पाड़।
शब्द
ज्वड़िक भाषा बण्दि,
शब्द
बतौन्दा छन भाव,
मयाळु
शब्द एक छ,
जैकु
ह्वन्दु अपणु भाव।
संकल्प
ल्यवा भाषा छन,
गढ़वाळि, कुमाऊंनि, जौनसारी,
मिटण
न द्यवा बोली भाषा,
जगमोहन जयाड़ा “जिज्ञासू” तैं प्यारी।
-जगमोहन
सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”
दर्द
भरी दिल्ली/ 05/02/2021
रचना: 1629
No comments:
Post a Comment