आग तापिक,
घाम तापिक,
दिन कटणा छन,
थर थर कौंपदु गात सैडु,
क्यापर होयुं मन,
ढिक्याण पेट,
न्युं च्युं बणिक,
कब तक रौला,
काम काज,
कन्न्ा हि पड़दु,
नितर क्या खौला,
ह्युंद का मैना,
लग्यां छन,
ज्यु कनु छ,
ऊंचि धार ऐंच बैठि,
छक्किक घाम तापौं,
तुम भि होला,
यनु सोचणा,
खराण्यां ह्युंद का मैना...
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लाग पर प्रकाशित
15.1.2014
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