सब्बि धाणि देन्दु,
देन्दु हि देन्दु छ,
कुछ नि लेन्दु......
पहाड़ कू ठण्डु पाणी,
बारानाज की दाणी,
कैल्सियम कू भण्डार
कोदु,
हाडगि मजबूत बणौन्दु,
रोग भी दूर भगौन्दु,
गेंठी, बेबर, बेर,
तड़ल,
काखड़ि, मुंगरि,गोदड़ि,
चचेन्डि,
कुजाणि क्या क्या
देन्दु,
देन्दु हि देन्दु कुछ
नि लेन्दु.....
अपणा मनोहारी रुप सी,
हमारा मन मा ऊलार जगौन्दु,
चुंच्यान्दा पोथ्लौं
कू चुंच्याट,
फर फर बग्दु बथौं,
रौला पाखौं बग्दु
पाणी,
बांज बुरांस देवदारु,
मुल मुल हैंस्दु
बुरांस,
मनख्यौं का मयाळु मन
मा,
कुतग्याळि सी लगौन्दु....
सोचा दौं, दर्द हि देणा
छौं,
कथ्गा मयाळु रौंत्याळु
छ,
हमारु ‘दर्द्याळु पाड़’......
14.11.2015
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