सन् उन्नीस सौ पच्चीस तलक,
बामणूं कु एकाधिकार रै,
साख्यौं बिटि जारी कविता-जात्रा,
'अंग्वाळ' कविता संग्रह,
गढ़वाळि कविता पुराण मा,
यनु लिख्युं छ.....
यनु भि लिख्युं छ,
सरोळा बामण हि,
ज्यादातर कवि रैन,
1925 का बाद,
जजमान गढ़वाळि कवि ह्वैन....
बग्त बदलि आज यनु निछ,
उत्तराखण्डी समाज का लोग,
कवि अर लिख्वार छन,
कुछ त पाड़ का दर्द सी,
उच्च कोटि का कवि बणिग्यन,
क्वी भाषा प्रेम मा.......
कवि नजर का कारण,
'अंग्वाळ' कविता संग्रह पढ़िक,
कविमन मा ख्याल आई,
कविता रुप मा लिखिक,
प्रिय पाठक गण आपतैं बताई....
7.11.2015
No comments:
Post a Comment