जब क्वी मुर्दा मरि,
गौं का मनख्यौंन,
मुर्दा बांधिक अलग मू धरि,
रिस्तेदारी का एक मनखिन,
अजौं क्या देर छ चर्चा
करि,
गौं का मनखि बतौण लग्यन,
साब अजौं जरा टैम लगलु,
एक आदिम हैक्का गौं,
पीपा ल्हीक जयुं छ,
किलैकि वख बंदबस्त करयुं
छ.....
जब ऊ आदिम अपणि कांधि मा,
भरयुं पीपा ल्हीक आई,
सब्बि मड़ेड्यौंन घूंट
लगाई,
तब मुर्दा कांधि मा
ऊठाई....
बस मा बैठिक जब,
बाटा मा एक बजार मा ऐन,
होटल मा पेट पूजा कू गैन,
घूंट लगैक खूब मुर्गा
उड़ैन.....
तब कुछ मनखि बोन्न लग्यन,
अपणा खुट्टौन समसाण जाणा
छौं,
मुर्दा फर अपणि कांध लगाणा
छौं....
क्ल्पना निछ कवि जिज्ञासु
की,
एक सज्जन कू बतैयुं हाल छ,
बात या हमारा पाड़ किछ,
जख हमारु गढ़वाळ छ,
मनख्वात मरिगी आज,
बोल्दन सब्य ह्वैगि समाज,
किलै होणु छ आज यनु,
नि रैगि सब्य हमारु
समाज........
दिनांक 15.12.2015
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