पहाड़ का द्वी
बुढ्या,
कुकरया अर बाग सिंह
जौंकु नौं,
प्यारा पहाड़ मा छ
जौंकु,
अपणु प्यारु
गौं.....
दाना सयाणौं कू नौं
नि लेन्दि,
वे गौं की ब्वारि,
बाग कु लुकण्यां
कुकर कु भुकण्यां,
बोन्नु हायिं छ
लाचारी.....
एक बोडा कू नौं छ
बाग सिंह,
तब बाग कू बोल्दन
लुकण्यां,
कुकरया दादा स्वर्गवासी
छ,
पर कुकर कु बोल्दन
भुकण्यां.....
नखरी भलि जनि भी
होलि,
पहाड़ की परंपरा छ
हमारी,
ये कारण सी नौं
बर्जदिन,
गौं की सब्बि ब्वारि......
यीं परंपरा मा सम्मान
की,
झलक सी छ दिखेणी,
दाना सयाणौं कू नौं
तब,
ब्वारि निछन
लेणी.......
जैं परंपरा मा मान
सम्मान हो,
सिरोधार्य छ हमारी,
लुकण्यां अर भुकण्यां
बोन्नु,
प्यारी परंपरा
हमारी.........
दिनांक 22.12.15
श्रीनगर गढ़वाल
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