बाळापन की याद औन्दि,
ज्युकड़ि ऊदास
ह्वोन्दि,
भै बंधु मा तबरि थौ,
आपस मा प्यार,
खद्दर कू कुर्ता
पैर्दा,
नाड़ादार सुलार,
तन बदन मा सबळांदा था,
जूं लगातार....
नांगा खुट्टौं
बाट्टा हिटदा,
ऊकाळि उद्यार,
ह्युंद का मैंना
ठेणी लग्दि,
लग्दु चचगार.....
क्वोदा की करकरी
रोठ्ठी मा,
खान्दा कंकर्याळु
घ्यू,
सब पक्वान घळताण्यां,
खुश ह्वोन्दु थौ
ज्यू....
बेडू, तिम्ला, खैणा खैन,
गेंठी, बेबर, बांसू,
काखड़ी, मुंगरी
खूब खैन,
मस्त कवि “जिज्ञासू”.....
हौळ लगै पुंगड़्यौं मा,
करि धाण काज,
याद औन्दि आज भारी,
ह्वेगि म्वोळ माटु आज....
मन मा बस्यां ऊ दिन,
पाड़ छुटिगि हे! राम,
सैर की जिंदगी दु:खदाई,
सब कुछ लगिगि घाम.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासू”,
दिनांक 12/7/17
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