कबिता ल्येखि पाड़ की,
खुद मिटौन्दु छौं,
याद औन्दि पाड़ की,
ये पाड़ औन्दु छौं.....
ब्वे बाबु की आस थै,
परद्येस जावा तुम,
ह्वोणि खाणी का खातिर,
रुप्या कमावा तुम......
जिंदगी का दिन कटेणा,
स्याणि गाण्यौं मा,
ख्वेक सब्बि धाणि हम,
सदानि स्याण्यौं मा.....
परद्येस मा ज्वानि जळिगी,
कुछ नि ह्वोणु छ,
सुख की गंगा नि बगणि,
दु:ख रुवौणु छ ......
म्वोळ माटु ह्वेगि आज,
कख जाणा छौं,
अपणि स्वाणि संस्कृति,
धार लगाणा छौं....
मन सी प्यारु पाड़ हमारु,
छुट्दु जाणु छ,
ह्वोन्दु खान्दु मनखि पाड़,
छ्वोड़ि जाणु......
ज्वानि बगिगी पाड़ की,
पाणी बगणु छ,
बौड़ि नि सक्दा पाड़ हम,
यनु लगणु छ.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 4.4.2017
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