12 मार्च, 1982 को
मैंने अपने गांव (बागी नौसा, चंद्रवदनी, टिहरी गढ़वाल) से दर्द भरी दिल्ली के लिए
प्रस्थान किया। मेरा लक्ष्य था रोजगार प्राप्ति।
यह लक्ष्य मैंने पहाड़ से ऊंचा उठने की प्रेरणा लेते हुए प्राप्त
किया। पहाड़ और घर परिवार से दूर रहने की
कसक मेरे मन में वेदना बनकर सदा बसी रही। इस
वेदना के कारण मेरे मन में कवित्व जागा और मेरी गढ़वाली कविता लेखन यात्रा 1997 से शुरु हुई। मैं अपनी गढ़वाली भाषा को बहुत प्यार करता
हूं। पहाड़ मेरे मन में बसता है, इसलिए मेरी कविताओं में पहाड़
की झलक आपको मिलती होगी। सोशियल साईट पर
प्रकाशित मेरी कविताएं पढ़कर पाठक मुझे पूछते, आपका कविता संग्रह कहां मिल सकता है। मेरे प्रिय मित्र श्री सुरेन्द्र सिंह रावत(सुरु रावत) ने
मुझे प्रेरित किया कि आप अपना कविता संग्रह निकालो।
हिमवंत कवि चन्द्र कुवंर बर्त्वाल जी की जीवनी पढ़कर
मैंने एक कविता ‘अठ्ठैस बसंत’ की रचना की। मेरे मन में विचार
आया, अपने पहले
कविता संग्रह का नाम ‘अठ्ठैस बसंत’ रखूं
और हिमवंत कवि चन्द्रकुवंर बर्त्वाल जी को सादर समर्पित करुं। मेरे आग्रह पर कविता
संग्रह को प्रकाशित करने के लिए श्री सुरेन्द्र सिंह रावत(सुरु रावत) जी नें रंक
बंधु साहित्य अकादमी, फरीदाबाद के
प्रचार सचिव श्री सुरेन्द्र सिंह रावत(लाटा) जी से संपर्क किया और हम इस काम में
जुट गए। आचार्य श्री प्रकाश चन्द फुलोरिया, अध्यक्ष, रंक बंधु साहित्य अकादमी, फरीदाबाद का हृदय से आभारी
हूं जिन्होंने कविता संग्रह ‘अठ्ठैस बसंत’ के प्रकाशन हेतु अपना अमूल्य योगदान दिया। वरिष्ठ साहित्यकार श्री भीष्म कुकरेती जी और
व्यंग सम्राट श्री नरेन्द्र कठैत जी ने मेरे कविता संग्रह की भूमिका लिखी। 12
सितंबर, 2017 को मेरा
कविता संग्रह मुझे प्रकाशित हो कर मिल गया।
मैं चाहता था अपने पहले कविता संग्रह ‘अठ्ठैस बसंत’ का
लोकार्पण पहाड़ में करुं। वरिष्ठ
साहित्यकार श्री पृथ्वी सिंह ‘केदारखण्डी’ जी से मैंने संपर्क किया और मन की बात
व्यक्त की। ‘केदारखण्डी’ जी ने बताया
15 सितंबर, 2017 को ऊखीमठ में हिमवंत(चन्द्र कुवंर बर्त्वाल
स्मृति मंच) और पंच केदार दर्शन, साप्ताहिक का कार्यक्रम
है। उस कार्यक्रम में आपके कविता संग्रह
का विमोचन होगा और आप सादर आमंत्रित हैं। खुशी का अहसास हुआ और मैंने सुरेन्द्र
सिंह रावत(सुरु रावत),श्री सुरेन्द्र सिंह रावत(लाटा),
श्री कुम्मी घिल्डियाल जी को कार्यक्रम की सूचना दी। सुरु रावत जी ने श्री हर्षपाल नेगी जी को
बताया। मैंने भी श्री नेगी जी से संपर्क
किया। नेगी जी को ही गाड़ी चलानी आती थी
इसलिए भौत दिन पूर्व ही उनको बताया।
सुबह के नौ बजने वाले थे, हम अब नई टिहरी पहुंच चुके थे। श्री कुम्मी घिल्डियाल जी हमें बाजार में लेने
आए और अपने आवास पर ले गए। आने की सूचना
के अनुसार हमारे लिए नाश्ते का बंदोबस्त श्रीमती मीनू घिल्डियाल जी ने किया हुआ
था। हम सभी ने पहले तो स्नान किया और कपड़े बदले।
श्री कुम्मी घिल्डियाल जी की बड़ी रसोई में बैठकर सभी ने भोजन किया। साथ ही हमारा छायांकन भी हो रहा था। दूसरी बार श्री कुम्मी जी के आवास पर आने का
मौका मिला। कई बार श्री घिल्डियाल जी हमें
आने का निमंत्रण दे चुके थे। जिंदगी के
जंजाल में उनके पास आना संभव नहीं हो पा रहा था।
हमारी अगली मंजिल ऊखीमठ थी। सफर काफी लंबा था इसलिए सभी
लोग जल्दी तैयार हुए और गाड़ी में बैठकर मंजिल की ओर चल दिए। टिहरी डाम परिसर से होते हुए हम जागदार
पहुंचे। वहां पर आवश्यक खरीददारी के के
बाद घनसाली के लिए प्रस्थान किया। लगभग तीन बजे हम घनसाली पहुंचे और वहां से
चिरबटिया की तरफ प्रस्थान किया। घाटी में
बड़े बड़े गांव और लंबे चौड़े धान के खेत और देवदार के पेड़ दिख रहे थे। लगभग चार बजे हम चिरबटिया पहुंचे और वहां पर
हमनें चाय पी। कुछ देर रुकने के बाद हम
मयाळी की तरफ चल दिए। ऊतराई का रास्ता था।
कुछ समय बाद हम एक गधेरे में रुके।
वहां पर एक घराट था, पानी तेज गति
से बह रहा था। श्री कुम्मी घिल्डियाल जी
ने पहाड़ की एक ककड़ी काटी और सबको बांटी।
घर से रखा हुआ भोजन सबने किया। छायाकारी
का दौर चला और उसके बाद हम आगे चल दिए। मयाळी होते हुए अब हम तिलवाड़ा की तरफ जा
रहे थे। देर हो चुकी थी और कुम्मी जी जल्दि चलने को कह रहे थे। लगभग छ बजे हम तिलवाड़ा पहुंचे। हमारी गाड़ी आगे थी और दूसरी गाड़ी पीछे रह गई
थी। केदारनाथ मार्ग जगह जगह टूटा फूटा
था। विजय नगर में श्री दीपक बेंजवाल जी से
एक हल्की मुलकात करने के बाद हम बांसवाड़ी की तरफ चल दिए। गुप्तकाशी के निकट कुंड पहुंचकर हमने साथियों
की इंतजार की। संध्या का समय था, मंदाकनी का बहाव तेज और मनमोहक लग रहा था। कुछ समय बाद साथी आए और हम
ऊखीमठ की तरफ चल दिए। ऊखीमठ में पहुंचने
पर हम छायाकारी श्री मनोज पटवाल जी के स्टूडियों गए। पटवाल जी से मेरा पहला परिचय था। कुछ समय बाद हमें लोक निर्माण विभाग के गेस्ट
हाऊस में ठहराया गया। श्री लक्ष्मण सिंह
नेगी जी आए, परिचय हुआ उसके बाद नेगी जी हमारी उचित व्यवस्था
के लिए बाजार की तरफ चले गए।
मान्यवर कुम्मी घिल्डियाल जी हारमोनियम और तबला साथा
लाए थे। हात मुंह धोने के बाद सभी बैठ गए
और कुछ समय बाद भोजन किया। भोजन करने के
बाद संगीत सभा सजी और गीत संगीत का दौर चला।
काफी देर तक कार्यक्रम चला, मैं थका होने के कारण बेड पर लेट गया।
नींद कब आई पता नहीं चला, सुबह हुई तो आंख खुली। कुम्मी जी ने रात्रि में ही बता दिया था सुबह
हम सुबह ओंकारेश्वर मंदिर जाएगें और आपका कविता संग्रह विधिवत भगवान को अर्पित
करेगें।
सभी साथी नहा धोकर मंदिर परिसर की ओर गए। मंदिर बहुत ही भव्य था। मैंने एक पूजा की थाली ली और साथियों सहित
मंदिर में गया। वहां पर लोकगायिका हेमा
करासी जी भगवान के दर्शन के लिए पहुंची हुई थी और पूजा चल रही थी। कुछ समय बाद हमारी बारी आई, पंडित श्री विश्वमोहन जमलोकी जी ने विधिवत
पूजा की। मैंने अपना कविता संग्रह उन्हें
सप्रेम भेंट किया। कुछ समय बाद मंदिर
परिसर का भ्रमण किया और करासी जी के साथी सभी ने फोटो खिंचवाई। छायाकंन का कार्य श्री कुम्मी जी सुंदर तरीके
से कर रहे थे। बाद में हम गेस्ट हाऊस
पहुंचें अपना सभी सामान गाड़ी में रख दिया।
ब्लाक के सभागार में कार्यक्रम था।
भोजन करने के बाद हम सभागार पहुचें।
वहां पर पंचकेदार दर्शन साप्ताहिक समाचार पत्र द्वारा हमारा स्वागत
हुआ। सभी गणमान्य व्यक्ति मंचासीन
थे। श्री संजय चौहान, श्री भगवती प्रसाद नौटियाल श्री लखपत राणा जी व अन्य सज्जनों से वहां पर
मुलकात हुई। मेरी कविता का विमोचन हुआ और
मैंने मंच से अपनी तीन कविताएं सुनाई।
लगभग चार बज चुके थे, कुम्मी जी जाने के लिए कह रहे
थे। कार्यक्रम जारी था और हमनें श्री
पृथ्वी सिंह केदारखंडी से से इजाजत लेकर मैगापाई जंगल रिजार्ट, चोप्ता के लिए प्रस्थान किया।
श्री दिनेश बजवाल जी अपनी हरे रंग की जिप्सी में जा रहे थे। परिचय मेरा उनसे तब तक नहीं हुआ था। अब हम ऊंचाई की तरफ गाड़ी से जा रहे थे। एक जगह पुल के पास रुककर हमनें कुछ तस्वीरें
ली। वहां पर एक बड़ा सा पत्थर था, उस पर बैठकर मैंन श्री पटवाल जी से अपनी तस्वीरें खिंचवाई। कुछ देर बाद हम
मैगपाई की तरफ चल दिए। सड़के से कुछ दूर
जाकर हमनें आपनी गाड़ी पार्क की और मैगपाई की तरफ चलने लगे।
मैगपाई परिसर जंगल के ठीक बीच में था और वहां पर
ढ़लानुमा जगह थी। बुग्याल खूब हरा लग रहा
था। जिंदगी में पहली बार बुग्याल का दर्शन हुआ।
टेटों के बीच में एक बड़ा सा हाल था।
वहां पर सामन रखकर हम बैठ गए। उधर
भोजन तैयार होने लगा। कुछ समय बाद हमनें
भोजन किया और संगीत सभा सज गई। ठंड भी
काफी थी, दिल्ली की
गर्मी से दूर मन को सकून मिल रहा था।
संगीत का दौर, जलती हुई अंगीठी, झूमते साथी ये सब कुछ था वहां पर। अब हम सोने के लिए टेटों में चले गए। पहली बार टेंट में साने का मौका मिला, सब सुविधाएं वहां पर थी।
सुबह आंख खुली तो में टेंट से बाहर आया। रात्रि में
हल्की बूंदे भी गिरी। आसमान साफ नहीं
था। मैं चाहता था हिमालय दर्शन करना। चाय पीने के बाद हम परिसर में घूमनें लगे। छायाकारी खूब चल रही थी। नाश्ता करने के बाद श्री कुम्मी जी और पटवाल जी
ने अपने कैमरों की खूब प्यास बुझाई। मुझे
अलग अलग अंदाज में कैमरे में कैद किया।
हमारा चलने का कार्यक्रम था लेकिन दिनेश बजवाल जी हमें विदा करने के मूढ़
में नहीं थे। दिन में भोजन करने के बाद
श्री कुम्मी जी, श्री दिनेश जी
और मैं ऊखीमठ के लिए चल दिए। ऊखीमठ में
मैंने अपने कविता संग्रह की एक प्रति श्री संदीप बेंजवाल जी को भेंट की। श्री संदीप स्वर्गवासी उत्तराखण्ड आंदोलनकारी
यशोधर बेंजवाल के सुपुत्र हैं। उनसे मिलने
की मेरी बहुत ही जिज्ञासा थी। कुछ समय
ऊखीमठ रुकने के बाद हमनें मैगपाई चोप्ता के लिए प्रस्थान किया। मरे अन्य साथी चोप्ता बजार घूमकर आए थे। शाम को भोजन बनने लगा, श्री
कुम्मी घिल्डियाल जी ने खुद करेले की शब्जी और मीट बनाई। सभी ने भोजन किया और संगीत सभा का आयोजन हुआ। मैंने भी अपनी कविता “धुर्पळा
कू द्वार टूटि भ्वीं मा पड़ी भत्त” गीत अंदाज में सुनाई। संगीत सभा को श्री मनोज पटवाल जी कैमरे में कैद
कर रहे थे। सभा के बाद हम सो गए।
17 सितंबर, 2017 सुबह हुई, सभी सुबह
जाग गए। हमें सीधे दिल्ली के लिए प्रस्थान
करना था। श्री लखपाल राणा जी को संदेश थे मेरे
यहां जरुर आना। विदाई का बग्त आया,
श्री दिनेश जी और अन्य साथी
हमें विदा करने आए। दिनेश जी पर विदाई की ऊदासी
झलक रही थी। कितना स्वागत किया दिनेश जी ने,
हम जिंदगी में भूल नहीं सकते।
अब हम गाड़ी में बैठकर ऊखीमठ की तरफ चल दिए। आधा घंटे का सफर करने के बाद श्री मनोज पटवाल हमसे
विदा हुए। पटवाल जी भी बहुत ऊदास दिख रहे थे। ऊखीमठ से हमनें गुप्तकाशी के लिए प्रस्थान किया।
लगभग 9 बजे हम वहां पहुंचे। मान्यवर राणा जी
ने हमारा भरपूर स्वागत किया। डा. जैक्सवीन
स्कूल के संग्रहालय, पुस्तकालय, लैब,
क्रीड़ा मैदान और अपने वनस्पति गार्डन का भ्रमण करवाया। कार्यालय में चाय पानी का दौर चला। आगंतुक रजिस्टर में हमनें अपने कमेंट लिखे और उसके
बाद रुद्रपयाग की तरफ प्रस्थान किया।
श्री हर्षपाल नेगी और मैं अपनी गाड़ी में बैठकर जा रहे
थे। कुम्मी जी की गाड़ी पीछे थी और धारी देवी
तक हम मिल न सके। धारी पहुंचने पर नेगी जी
ने कहा चलो माता के दर्शन कर लेते हैं। अलकनंदा
के तट पर पहुंचकर हमनें मंदिर में जाकर माता के दर्शन किए। नदी तट पर सुंदर तस्वीरें लेने के बाद सड़क पर आकर
गाड़ी में बैठकर श्रीनगर के लिए प्रस्थान किया।
हमनें श्रीनगर से कुम्मी जी को फोन किया, पता चला वे पहुंचने वाले हैं। श्रीनगर से हम साथ चलने लगे और मलेथा में हमनें
भोजन किया। श्री कुम्मी जी वहां से विदा हुए,
उन्हें श्रीनगर जाना था। होटल के पास ही माधो सिंह भण्डारी जी द्वारा बनवाई
सुरंग थी। हम सभी सुरंग के पास गए,
वहां पर तस्वीरे लेने के बाद वापस आकर गाड़ी में बैठकर रिषिकेश की तरफ
चल दिए। लगभग आठ बजे रात्रि को हम रिषिकेश पहुंचे। तपोवन में हम श्री सुरु रावत के मित्र श्री रमेश
लिंगवाल जी के यहां रुके। वहां पर हमनें भोजन किया और दो घंटे रुकने के बाद दिल्ली
के लिए प्रस्थान किया।
लंबी यात्रा,
रात्रि का समय, श्री हर्षपाल नेगी जी अकेले गाड़ी
चला रहे थे। सुबह लगभग साढ़े तीन बजे हम बदरपुर
पहुंचे। मैं सुरु रावत जी के आवास पर रुक गया। नेगी जी और सुरु रावत ने कविमित्र श्री सुरेन्द्र
सिंह लाटा जी को फरीदाबाद छोड़ा। इस तरह हमारी
पहाड़ यात्रा का सुखद अंत हुआ।
जगमोहन सिंह
जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 27/9/2017
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