बाँज बुरांश के,
सघन वन के बीच में,
कवि अकेला मौन हो,
निहार रहा सुन्दरता,
और कलम से अपनी,
कर रहा बुरांश के रूप का,
चित्रण और बखान,
धन्य हे! जन्मभूमि उत्तराखंड,
देवभूमि तू है महान.
इधर मनमोहक "बुरांश",
सघन वन में,
उधर चाँदी सा चमकता,
उत्तराखण्ड हिमालय,
जैसे हो रहा संवाद,
दोनों के बीच में,
आज कौन आया है?
सुन्दरता निहारने,
आपकी और मेरी.
बुरांश कह रहा,
हे पर्वतराज हिमालय,
दूर दिल्ली प्रवास से,
आया है आज,
मुझे और आपको निहारने,
गढ़वाली कवि "जिज्ञासु",
जिन्हें लगि थी खुद,
आपकी और मेरी,
जन्मभूमि उत्तराखण्ड की.
कवि:जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: १५.११.२०१०
(सर्वाधिकार सुरक्षित और मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
मेरा पहाड़ पोर्टल पर-उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध पुष्प बुरांश-शीर्सक पर मेरी कविता "बुरांश"
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
http://www.merapahadforum.com/photos-and-videos-of-uttarakhand/rhododendron(buransh)-the-famous-flower-of-uttarakhand/30/
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Monday, November 15, 2010
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बहुत खुब.. बाज बूराश क दिन मेरा पहाड की शान
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