ऐसा कहते हैं लोग,
लेकिन! अपनी जिंदगी में,
दूसरों की जिंदगी को,
कुछ इस तरह देखा...
किसी की खास और,
किसी की आस होती है,
जिसे होता है अहसास,
जिंदगी में ख़ुशी का,
उसे जिंदगी बहुत प्यारी,
संग उसका सुखद,
स्वर्ग जैसा लगता है.
किसी को आस थी इसमें,
ख़ुशी के लिए जी रहा था,
कोई अभागा बन करके,
अपने ग़मों को पी रहा था,
लेकिन जिंदगी कैसे जियें?
कोई कठिन राह चलकर,
आराम से जी रहा था,
अंदाज सबके अपने थे,
किसी के लिए "आस जिंदगी",
हारे हुए के लिए "निराश जिंदगी",
जो जी लिया जिंदगी को,
उसकी जिंदगी खास होती है,
जो हार गया उससे,
उसकी "जिंदगी अजीब होती है"
कालचक्र घूमता है,
जिंदगी भी उसके साथ,
चलती है सभी की,
कितनी अजीब होती है,
सवाल होती है,
कितनी खूबसूरत होती है,
जीते और हारे की,
किस्मत के मारे की,
जरूरत नहीं सहारे की,
जिंदगी बनाना और बिगाड़ना,
हमारे ही हाथ है,
प्राप्त की जिसने खुशियाँ,
समझो,जैसे बरसात है,
कहते हैं लोग,
"जिंदगी अजीब होती है".
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(पहाड़ी फोरम, यंग उत्तराखंड और मेरा पहाड़ पर प्रकाशित)
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल.
दिल्ली प्रवास से...........१९.११.२०१०
("ये जिंदगी भी कितनी अजीब होती है
बिना जबाब के ही सवाल होती है
आज अगर जी लिए खुशी से तो
फिर भी नहीं समझ सकते है
यह जिंदगी कितनी खूबसूरत होती है"
श्रीमती मंजरी कैल्खुरा की रचना पर मेरी अनुभूति)
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
No comments:
Post a Comment