दादा चश्मा लगैक,
पढ़ण लग्युं छ,
नाती की पाती,
क्या होलु लिख्युं?
नाती लिखणु छ,
दादा जी क्या बतौण,
तुमारी याद मैकु,
अब भौत सतौणि छ,
बचपन मा तुम दगड़ि,
जू दिन बितैन,
अहा! उंकी याद अब,
मन मा औणि छ.
आज भि मैं याद छ,
जै दिन मैन ऊछाद करि थौ,
तब आपन मैकु,
पुळेक खूब
समझाई,
पर मेरा बाळा मन मा,
उबरि समझ नि
आई.
अब मैं बिंगण लग्युं छौं,
आपसी आज दूर हवेग्यौं,
पुराणी यादु मा ख्वेग्यौं,
अब मैं जब घौर औलु,
चिठ्ठी मा जरूर लिख्यन,
क्या ल्ह्यौण तुमारा खातिर,
अब ख़त्म कन्नु छौं पाती,
तुमारा मन कू प्यारू,
मैं तुमारु नाती.....
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"http://hillwani.com/ndisplay.php?n_id=181
दादा मनु छ हुक्का कि सोडी
ReplyDeleteपर आन्खियों मा नाति कि मुखडी
सालो हवेगेन नाती नी बौडी
सभी चली गेन हम तै छोडी
मेरा अपणो आवा बौडी
हमतै ना जावा छोडी
कख गै होला उ दिन जब दादा नाती तै घुघोती खिलान्दू छ अब दादा बस उ दिनो तो सोची सोची की मन मा उमाल भोरी आणी होली