प्यारा उत्तराखंड की,
जब मिल्दि छ,
गौं मुल्क बिटि अयाँ,
कै भै बन्ध, लंगि संगि सी,
भलु लगदु छ,
दूर परदेश मा......
जन, पहाड़ मा ऐंसु,
खूब बरखा होणी छ,
ह्यूं भि खूब पड़ी,
बुरांश खूब खिल्याँ छन,
डांडौं मा,
फ्योंलि का फूल,
खूब खिल्याँ छन,
पाख्यौं मा,
रौंत्याळु छ लगणु,
हमारू पहाड़.......
जन, गौं मा ऐंसु,
खूब फसल पात छ,
गौं तक सड़क बणिगी,
बिजली भि पौन्छिगी,
पंड्वार्त होणी छ,
गौं का सामणी,
ऊँचि धार ऐंच,
कुल देवता कू,
नयुं मंदिर बणनु छ.....
मन भारी खुश ह्वै जान्दु,
जब मिल्दि छ,
उत्तराखंड की "खबर सार",
भलु लगदु छ,
दूर परदेश मा......
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: नौसा-बागी, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल.
१०.२.२०१२
प्रवास: नई दिल्ली
www.pahariforum.net
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Friday, February 10, 2012
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