हे बुढया त्वैन,
मोळ माटु करियालि,
दै दूध कू भांडु,
सब्बि धाणि,
रोठ्ठी पाणी,
जिंदगी मा कर्युं धरयुं,
अपणा हातुन हे,
टोटगु करियालि रे,
हे बुढया त्वैन,
खै नि जाणि रे.....
देख तेरा सब्बि दगड़्या,
कना छन मौज मा,
शामिल होयां छन आज,
चकड़ीतु की फौज मा,
देख तू भी रंदु बुढया,
महल अर मौज मा,
पर क्या कन्न त्वैन,
मोळ माटु करियालि रे,
हे बुढया त्वैन,
खै नि जाणि रे....
नि रै होलु हे बुढया,
भिन्डी तेरा भाग मा,
देख लोग तरसणा छन,
कब मिललु जाग मा,
पर क्या कन्न त्वैन,
मोळ माटु करियालि रे,
हे बुढया त्वैन,
खै नि जाणि रे....
रचना: -जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १५.५.१२)
- जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु रावत जी आपकु भौत भौत धन्यवाद....प्रोत्साहन अर कामना का खातिरMay 16 at 8:49am · ·
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- Gopal Singh Rawat shubh prbhaat bhai ji...bahut achhi aur sundr kavita ch apki mai shear b kardun chhun aap jana mahan insaan humara uttarakhand ki shaan ch mi tai garv ch.May 16 at 8:58am via mobile ·
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