पहाड़ मा भि रंदु थौ,
प्रवास मा भि रंदु छौं,
सुबेर बिटि ब्याखना तक,
नौकरी की आड़ मा,
अल्झ्युं अल्झ्युं रंदु छौं,
उलझनु का झाड़ मा,
मिलि जौ मैकु यथगा,
जीवन मेरु सुधरि जौ,
रंदु छौं ताड़ मा,
सोच्दु छौं,
प्रवास बिटि खाली हात,
क्या बुढापु ल्हीक जौलु,
अपणा प्यारा पाड़ मा,
बोल्दु छ पहाड़ मैकु,
कब तक रैल्यु,
मै सी दूर दूर,
नि देखण त्वेन रंग रूप मेरु,
लिख्दु ही रैल्यु कविता मै फर,
हे ! कवि "जिज्ञासु" तू,,
अर ऊल्झ्युं ही रैल्यु,
"रोठ्ठी का जुगाड़ मा".....
"रोटी के जुगाड़ में"
पहाड़ में भी रहता था,
प्रवास में भी रहता हूँ,
सुबह से शाम तक,
नौकरी की आड़ में,
उलझा उलझा रहता हूँ,
उलझनों के झाड़ में,
मिल जाये मुझे इतना,
जीवन मेरा सुधर जाए,
रहता हूँ ताड़ में,
सोचता हूँ,
प्रवास से खाली हाथ,
क्या बुढ़ापा लेकर जाऊंगा,
अपने प्यारे पहाड़ में,
कहता है पहाड़ मुझे,
कब तक रहेगा,
हे ! कवि "जिज्ञासु" तू,
मुझ से दूर दूर,
नहीं निहारेगा सौंदर्य मेरा,
लिखता ही रहेगा,
कविताएँ मुझ पर,
और उलझा ही रहेगा,
"रोटी के जुगाड़ में"...
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु",
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २२.५.१२)
- Madhuri Rawat सच इस रोटी के जुगाड़ में ही तो पड़े हैं यहाँ वहां हम ....काश हमारा पहाड़ हमें रोटी देने में सक्षम होता तो इतना पलायन भी नहीं होता
- Naresh Chamoli Roti is required, roti rukhi ho rahi hai, roti rooth jayegi. migration to wo karwa rahi hai. ROTI PAIDA KARNE KI SOCH PAIDA KAREN> CHALO PAHAD.
Gopal Singh Rawat shubh madhyam!! Bheji
sundr.ati sundr pankhtiyan likhi apne..kya kan bheji papi pet ku swal ch roti v chheni ch..pahad ki na jawani na paani humara pahad ka kaam aayi.
2 hours ago via mobile ·
No comments:
Post a Comment