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आखिर!
आप कविवर,
यीं धरती सी दूर,
चलिग्यन, कुजाणि कख,
कालजयी,
कुमाऊनी कविताओं कू,
सृजन करिक,
अनंत की ओर.....
हमारा प्रिय स्वर्गवासी,
जनकवि "गिर्दा" जी तैं,
धरती का हाल बतैन,
ऊँका चाण वाळौं की,
विरह मा व्यथित,
मन की बात बतैन,
ह्वै सकु त फिर,
"गिर्दा" जी का दगड़ा,
नयुं शरीर धारण करिक,
उत्तराखंड की धरती मा,
कविवर बौड़िक ऐन..
श्रधांजलि-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
२१.५.२०१२
"शेरदा अनपढ़" जी..
कविवर लौटकर आना....
आखिर!
इस धरती से चले गए,
अपने चाहने वालों से दूर,
कालजयी कुमाऊनी कविताओं का,
सृजन करके,
अनंत की ओर,
न जाने कहाँ...
हमारे प्रिय स्वर्गवासी,
जनकवि "गिर्दा" जी को,
धरती के हाल सुनना,
उनके विरह में व्यथित,
चाहने वालों की,
बात भी बताना,
हो सके तो फिर,
"गिर्दा" जी सहित,
नवीन काया धारण करके,
उत्तराखंड की धरती पर,
पुनर्जन्म धारण करके,
कविवर लौटकर आना....
श्रधांजलि-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
२१.५.२०१२
Photo: Source: Pahadiforum.com
Photo: Source: Pahadiforum.com
कुमाऊनी कवि स्वर्गीय शेर सिंह बिष्ट 'शेरदा अनपढ़' का 20 मई 2012 को हल्द्वानी में निधन हो गया..
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Deepak Benjwal Serda ka jaane ka bhut gam hai..............serda ne Pahad ki bawnao, awyktao or smsyao par khub likhaa.....hm Pahad ke is mahan jankavi ko pure Dastak pariwar ki or se shrdhanji wykt krtee hai........
Bhishma Kukreti शेर दा के निधन से आंचलिक भाषाई साहित्य को आघात लगना लाजमी है .शेर दा के
विचार मैंने वीरेंद्र पंवार जी के व शेर दा के एक इंटरव्यू में जाना. गिर दा,
शेर दा जैसे भाषा प्रेमियों की जगह भरना कठिन ही है.किन्तु उनके द्वारा उठाये
गये कामों को आगे बढाना भी हम सबका कर्तव्य बनता है.
उनके चले जाने पर शोक तो होगा ही किन्तु हमे साथ साथ सौं भी खानी पड़ेगी कि
भाषाई आन्दोलन को ठंडा नहीं होने देंगे.यही सच्ची श्रधांजलि होगी
प्रभु उन्हें सद्गति दें!
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