कुछ दूर जाकर मैंने पलट कर पीछे देखा,
पहाड़ के आंसुओं को छूके मैंने देखा,
मत जा दूर ऐ मेरे पहाड़ी,
पहाड़ ने रो कर ये मुझसे बोला,
मैंने पूछा पहाड़ से, क्योँ तूने मुझे रोका,
पहाड़ ने मुझसे बोला,
आज तू मुझे छोड़कर जाएगा,
कल तू अपने इन पहाड़ों को भूल जाएगा,
फिर तेरे इन पहाड़ों के आंसुओं को,
कौन समझ पायेगा,
पलट कर पहाड़ों से मैंने कहा,
आज आँखे खोल दी तुमने,
मैं तो तुम्हारे दर्द को समझ गया,
कोई और भी तुम्हारा दर्द समझ पायेगा....
मैं अपने उत्तराखंड से प्यार करता हूँ....
कवि पुत्र: मनमोहन सिंह जयाड़ा की कलम से
मुझे पता नहीं था मेरा पुत्र भी कवि है,
मुझे उम्मीद है मेरी कवि यात्रा को आगे जारी रखेगा..
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
१३.८.२०१२
No comments:
Post a Comment