औलाद के लिए,
त्याग करते हुए,
अपना जीवन बिता देते हैं,
और अंत में उन्हें मिलता है,
कष्टदायी बुढ़ापा,
दुर्बलता की कगार पर,
पहुंच चुका शरीर,
जहाँ होती है,
औलाद से सेवा की अपेक्षा,
कितने कर पाते हैं,
सच्ची सेवा?
माता और पिता के बिना,
सूनापन आ जाता है,
इंसान के जीवन में,
जो ममता के धनी होते हैं,
औलाद के लिए अपनी ,
जिनकी सेवा करने में,
अपार सुख मिलता है,
एक मौका होता है,
हर इंसान के लिए,
जिन्दगी में,
अगर समझ सको.
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
१३.८.२०१२
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