जो आह! तक नहीं करते,
जब इंसान उनको,
अपने स्वार्थ के लिए,
काटता है, सताता है,
उन पर घाव करता है...
पहाड़ के संसाधनों का,
निर्ममता से दोहन,
लालच के वश हो,
अंधा बनकर करता है...
पूरी करती है,
कौन करेगा,
उसकी रक्षा?
और श्रृंगार,
पहाड़ को उसने,
खूबसूरत बनाया है,
हमें भी खूबसूरत,
इतने लगते हैं,
हर कोई जाता है,
उनके पास,
होता है फिर,
सुखद अहसास....
लेकिन! उनका गुस्सा,
सबने देखा,
प्रलय के रुप में,
देवभूमि उत्तराखण्ड की,
पावन धरती पर,
जहां विराजते हैं,
साक्षात भगवान......
27.6.2013
उत्तराखण्ड में 16-17 जून-2013 को पहाड़ पर केदारनाथ धाम पर पैदा हुई जल प्रलय पर रचित मेरी कविता।
जब इंसान उनको,
अपने स्वार्थ के लिए,
काटता है, सताता है,
उन पर घाव करता है...
ब्यापारी बनकर,
लालची इंसान,पहाड़ के संसाधनों का,
निर्ममता से दोहन,
लालच के वश हो,
अंधा बनकर करता है...
जबकि प्रकृति,
इंसान की जरुरत,पूरी करती है,
कौन करेगा,
उसकी रक्षा?
और श्रृंगार,
पहाड़ को उसने,
खूबसूरत बनाया है,
हमें भी खूबसूरत,
इतने लगते हैं,
हर कोई जाता है,
उनके पास,
होता है फिर,
सुखद अहसास....
कुछ नहीं कहते,
बेजुबान पहाड़,लेकिन! उनका गुस्सा,
सबने देखा,
प्रलय के रुप में,
देवभूमि उत्तराखण्ड की,
पावन धरती पर,
जहां विराजते हैं,
साक्षात भगवान......
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु,
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित27.6.2013
उत्तराखण्ड में 16-17 जून-2013 को पहाड़ पर केदारनाथ धाम पर पैदा हुई जल प्रलय पर रचित मेरी कविता।
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