गढवाळि कविता,
भै बंधु,
मन मेरु भौत खुश होंदु,
पुराणा जमाना की याद,
मन मा मेरा जब औंदि,
मन ही मन मा रोंदु,
मुल्क छुटि पहाड़ छुटि,
छुटिगि आज सब्बि धाणि,
कखन पेण परदेश मा,
छोया ढुंग्यौं कू पाणी,
बितिग्यन ऊ दिन आज,
जब गौं का बाटा फुंड,
लफड़ेन्दा था माटा मा,
बचपन अपणु खत्दा था,
प्यारा गौं का बाटा मा,
ऊछाद कबि जू करदा त,
पड़दि थै मार कंडाळि की,
आज त याद भौत औंदि,
अपणि प्यारी डिंडाळि की,
क्या बोन्न आज भै बंधु,
बित्यां दिन भौत सतौन्दा,
गढवाळि कविता,
भै बंधु,
तुम हि मैमु लिखौन्दा....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासु”
22.10.2013, सर्वाधिकार सुरक्षित
भै बंधु,
मन मेरु भौत खुश होंदु,
पुराणा जमाना की याद,
मन मा मेरा जब औंदि,
मन ही मन मा रोंदु,
मुल्क छुटि पहाड़ छुटि,
छुटिगि आज सब्बि धाणि,
कखन पेण परदेश मा,
छोया ढुंग्यौं कू पाणी,
बितिग्यन ऊ दिन आज,
जब गौं का बाटा फुंड,
लफड़ेन्दा था माटा मा,
बचपन अपणु खत्दा था,
प्यारा गौं का बाटा मा,
ऊछाद कबि जू करदा त,
पड़दि थै मार कंडाळि की,
आज त याद भौत औंदि,
अपणि प्यारी डिंडाळि की,
क्या बोन्न आज भै बंधु,
बित्यां दिन भौत सतौन्दा,
गढवाळि कविता,
भै बंधु,
तुम हि मैमु लिखौन्दा....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासु”
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