या जिंदगी लगणि छ,
सोचा दौं दिदा भुलौं,
सब्बि बोदा दु:खि ह्वैक,
हैंसि हैंसि अर रवैक,
काटणा छन जिंदगी तैं,
पै अर कुछ ख्वैक,
तौ भी मन मा रंदि,
जिंदगी की चाह,
कैन भी नि ली सकि,
यीं जिंदगी की थाह,
अयां कख जौला कख,
कब तक रौला यख,
यनु कैन भी नि सोचि,
सोचि त सिर्फ सोचि,
या जिंदगी जखळयाण....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासु”
14.10.2013
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