हिमवंत कविन देखि था,
अंत मा पतझड़ सी आई,
वेदना बसिं थै बदन मा,
निडर ह्वैक कलम चलाई......
होणु थौ अहसास कवि तैं,
अब कुछ दिन हि बच्युं रौलु,
निष्प्राण होण तक मैं,
कुछ कालजई रचि जौलु....
कविन देखि थै अन्वार अपणि,
डौर सी कंपनारु छुटि,
कैं व्यथा का कारण मेरु,
बसंत रुपी यौवन लुटि.....
दूर हि रा माँ जी मैसी,
तैं थगोलि मैं जनैं सरकौ,
क्षय रोग सी ग्रस्त छौं मैं,
मुक्क अपणु फुंड फरकौ.....
माँ का मन की वेदना,
नौनु दिन दिन हर्चणु थौ,
वेदना ग्रस्त हिमवंत कवि,
निडर रचना रचणु थौ.....
देखिक अंतहीन वेदना मेरी,
सब्बि चांदा मैं जान्दु मर,
आभार प्रगट करदा प्रभु कू,
दग्ध करि गंगा तट फर.......
"अठ्ठैस बसंत" बित्यन जनि,
निर्दयी पतझड़ सी आई,
काफळ पाको कवि चन्द्र कुँवर,
काल का मुख मा समाई.......
दिनांक 17.5.2016
No comments:
Post a Comment