कख गैन मनखि,
घर बार त्यागि,
घर गौं हमारू टपराणु,
देळी मा बैठ्युं मंगतु बिचारू,
कख गैन दिदा आज ऊ दिन,
ऊदौळी ऊठणि मन मा वैका,
ऊदास ह्वैक बताणु...
मेरु भैजि परदेशी ह्वैगि,
घर गौं अब नि औन्दु,
मैकु भैजि की याद औन्दि,
मन अति ऊदास होंदु....
ब्वै बाब मेरा स्वर्गवासी,
भैजि फर हि थौ भारी सारू,
कखि मिललु बतैन वैकु,
दिदा तुम मेरी लाचारी...
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
रचना सर्वाधिकार सुरक्षित ब्लॉग पर प्रकाशित,
1.4.2013 दूरभाष: 9654972366
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