ऊँचा डांडौं ऐंच,
शिवजी कू कैलाश देखि,
भारी खुश होणु,
अयुं छौं मुल्क तुमारा,
खित खित हैंसिक,
तुमतैं छ बुलौणु...
शिवजी कू प्यारू,
देवतौं का देश मा,
औन्दु हर साल,
फयोंलि कू भैजि,
पहाड़ की पछाण,
बौळया स्यू बुरांश...
डांडौं की आँछरी,
बुरांश कू रंग देखि,
वैका रंग मा खोईं,
बुरांश बिचारू,
आँछरियौं तैं हेरि,
शर्मान्दु भारी...
जैन देखि होलु,
डांडौं ऐंच खिल्युं,
शर्म्यालु बुरांश,
ऋतु बसंत मा वैकु,
वैकि याद आली,
बुलालि हिल्वांस....
कवि लोगु का मन मा,
कुतग्यालि लगौंदु,
डांडौं कू रंगीलु बुरांश,
कवि "जिज्ञासु" की इच्छा,
ज्यू भरिक देखौं,
जब तक छ सांस...
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ऋतु बसंत-2013 9.4.13
लोकरंग ब्लॉग के लिए रचित एवं प्रकाशित
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