हिमालय का आंसू पोंजा,
अर लगावा डाळी,
सृंगार होलु पहाड़ कू,
फैललि फेर हरियाळी......
किलै बंजेणा घर गौं?
पर्वतजन का मन की बात,
सुणा ऊंका धोरा जावा,
कनु विकास चैंदु ऊंतैं,
दर्द क्या छ ऊंकू आज,
बिंगा अर बिंगावा.....
आज पाणी हरचणु छ,
द्योरू कम बरखणु छ,
हर साल पहाड़ फर,
आफत भौत औणि छन,
डरयुं आज पर्वतजन....
डाळी, पाणी पहाड़ का,
सच मा सोचा,
हे ज्यू पराण छन,
बग्त आज धै लगाणु,
जू भी कन्न, हम्नै कन्न,
"गौं बसावा -हिमालय बचावा"....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
"गाँव बसाओ, हिमालय बचाओ" आन्दोलन को समर्पित मेरी ये रचना.
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित, E-mail: jjayara@yahoo.com
Ph.09654972366, 25.4.2013
http://www.facebook.com/events/287925621341233/298102613656867/?notif_t=plan_mall_activity
No comments:
Post a Comment