बहुत याद आती है,
मन मष्तिक में आज,
उभरते हैं वो बीते पल,
जो माँ की निर्मल छाया में,
सुखद हो बिताये थे,
अहसास होता है हर पल,
आज माँ नहीं है,
हो गया हूँ अनाथ,
कामना है मेरी,
माँ मुझे पुनः मिले,
आपका साया और साथ....
मैं सोता था और
आप,
हाथ चक्की घुमाकर,
पीसती थी गेंहू,
क्योंकि मुझे,
स्कूल जाना था,
जहाँ पर आज हूँ मैं,
मेरा स्वर्णिम भविष्य,
बनाना था....
आपके उपकार का,
मैं क्या मोल अदा करूँ?
निशब्द हूँ आज,
माँ मेरे पास सब कुछ है,
कमी है एक बात की,
आज आप नहीं हो,
आपकी यादें मेरे पास,
मंडरा रही हैं,
अहसास होता है,
अदृश्य हो आप मुझे,
पुकार रही हो माँ,
मत हो उदास,
मैं तेरे पास ही हूँ,
हर पल सर्वदा....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं
प्रकाशित
13.5.2013
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