ह्युंद का दिन लग्यां,
हरि बोला जी,
जाडडु भौत होणु छ,
आंखा कंदूड़ खोला जी....
हरि बोला जी,
जाडडु भौत होणु छ,
आंखा कंदूड़ खोला जी....
लत्ता कपड़ा खूब पैरा,
शरील ढ़कै रखा जी,
चुल्ला की आग तापा,
मोटी रजै ओढा जी....
शरील ढ़कै रखा जी,
चुल्ला की आग तापा,
मोटी रजै ओढा जी....
गरम सरम खूब खवा,
थोड़ी थोड़ी पेवा जी,
ढिक्याण मुख रखिक,
फंसोरिक सेवा जी....
थोड़ी थोड़ी पेवा जी,
ढिक्याण मुख रखिक,
फंसोरिक सेवा जी....
आलु मौळ्यार जब बौड़ि,
ह्युंद तैं अड़ेथा जी,
हर ऋतु कू अपणु मजा,
भला भाग हमारा जी.....
ह्युंद तैं अड़ेथा जी,
हर ऋतु कू अपणु मजा,
भला भाग हमारा जी.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु",
मेरा कविमन कू कबलाट कविता का रुप मा
दिनांक: 6.1.2015
मेरा कविमन कू कबलाट कविता का रुप मा
दिनांक: 6.1.2015
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