एक मौ का बखरोटा,
लगि बल आग,
एक बाखरी थै तौंकी,
लोगुन देखि भड़ेयीं,
लोण मर्च राळि खौला,
हमारा भला भाग.....
भड़ेयीं बाखरी समझिक,
गौं वाळौन शिकार खाई,
संजोग सी कुछ देर मा,
ऊंकी बाखरी घौर आई.....
तब भारी घंघतोळ ह्वेगि,
हम्न क्या खाई?
सब्बि स्वोच्दा हि रैन,
पर बिंगण मा नि आई....
वीं मौ का एक नातिन ब्वोलि,
हमारु कुत्ता नि दिखेणु,
गौं का सब्बि मनख्यौं कू,
मन अब झिझड़ेणु.......
बात सच्चि निकळि,
बाखरी की जगा कुत्ता भड़ेगि,
सैडु गौं बाखरी समझिक,
कुत्ता की शिकार खैगि......
स्वोचि समझिक सदा,
करयुं चैन्दु क्वी भी काम,
कुत्ता खैग्यन ल्वोग,
क्या बतौण, हे! राम.....
10/8/2017
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