होलि ठेणी लगणि,
हाथ खुट्टौं फर,
पड़्युं होलु ह्युं,
मसूरी,धनोल्टी,सुरकंडा,
सिद्धपीठ चन्द्रबदनी,
चन्द्रकूट पर्वत,
जख बिटि होलु दिखेणु,
उत्तराखंड हिमालय.
ह्यून्द होलि छयिं,
ह्यून डांडी-काँठी,
चाँदी सी चमकणी,
खतलिंग,चौखम्भा, नंदाघूंटी,
गंगोत्री, पंचाचूली, त्रिशूली,
होलि मैतुड़ा अयिं,
प्यारी दीदी-भुलि.
प्यारा ब्वे बाबु मू,
जू होला कौम्पणा,
ढिक्याण का पेट,
होलि खुद बिसरौणी,
छकिक छ्वीं लगौणी,
होलि बाड़ी अर फाणु,
अपणा हाथुन बणौणि
ऊँ तैं खलौणी.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: ५.१.२०१०
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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