पूछि हम्न,
गढ़वाळि भी बोल्दु छ,
पहाड़ का बारा मा सोच्दु छ,
बल बिंग्दु छ पर,
बोल्दु निछ,
ज्व निछ भलि बात,
भाषा अर संस्कृति कू श्रींगार,
हमारी नयीं पीढ़ी का हात,
मोळ माटु होणु छ,
नौनु तुमारु,
गढ़वाळि नि बोल्दु....
गढ़वाळि भी बोल्दु छ,
पहाड़ का बारा मा सोच्दु छ,
बल बिंग्दु छ पर,
बोल्दु निछ,
ज्व निछ भलि बात,
भाषा अर संस्कृति कू श्रींगार,
हमारी नयीं पीढ़ी का हात,
मोळ माटु होणु छ,
नौनु तुमारु,
गढ़वाळि नि बोल्दु....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
मेरा कविमन कू कबलाट,
12.8.14
मेरा कविमन कू कबलाट,
12.8.14
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