"हमारा प्यारा मुल्क"
(जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
बसंत की बयार बगणि,
फूल्याँ होला पय्याँ आरू,
फ्योंलि बुरांश का रंग मा,
हे! रंग्यु होलु मुल्क हमारू,
कख कख छैं आप लोग?
अपणा मुल्क अजग्याल,
गयुं होलु चंचल मन तुमारु,
होलि घुघती बासण लगिं,
सजिं होलि देवभूमि हपार,
लद कद होलि फूलिं डाळी,
जख फुंड ग्यौं जौ की सार,
क्या बतौण मेरा मुल्क,
बसंत की बयार बगणि,
जन्मभूमि हमारी होलि,
ब्योलि का समान लगणि,
कसक पैदा होणि छ,
कवि "जिज्ञासु" का मन मा,
चलि जौं वे प्यारा मुल्क,
हेरलु जख बौळ्या बसंत मैकु,
डाळ्यौं पिछ्वाड़ि बिटि सुरक,
हर साल औन्दु छ बसंत,
हे "हमारा प्यारा मुल्क"....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: ६.३.२०१२)
(बसंत-२०१२ पर मेरी गढ़वाली कविता)
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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मात्रभूमि को समर्पित एक भावपूर्ण कविता. इस कविता से मिलती जुलती नेगी जी का हृदयस्पर्शी गीत आपको मेल से भेज रहा हूँ. आपने सुना ही होगा.
ReplyDeleteहोली की अनेकानेक शुभकामनाएं.