Thursday, March 29, 2012

"तू अर मैं"

अळ्झ्याँ छौं-अळ्झ्याँ छौं,
जिंदगी का जाळ मा,
मन पराण पौन्छ्युं छ,
प्यारा कुमाऊँ-गढ़वाळ मा...

होलु बुरांश बणांग लगौणु,
मुल्क हमारा छयुं मौळ्यार,
पाखौं मा फ्योंलि फूलिं होलि,
मनख्यौं का मन मा होलु ऊलार,
ऋतु मौळ्यार की, धै लगौंदी,
आवा हे प्यारा पहाड़ मा,
ताल, बुग्याळ, बुरांश तैं देखा,
प्यारा मुल्क पहाड़ मा,
बानी बानी का फूल खिल्यां,
लगल्यौं अर झाड़ मा,
टक्क लगिं मन मा हमारा,
मन पराण पौन्छ्युं छ,
प्यारा कुमाऊँ-गढ़वाळ मा...

तू अर मैं,
दूर देश-परदेश मा,
अळ्झ्याँ छौं-अळ्झ्याँ छौं,
जिंदगी का जाळ मा,
टक्क लगिं मन मा हमारा,
मन पराण पौन्छ्युं छ,
प्यारा कुमाऊँ-गढ़वाळ मा...
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टिहरी गढ़वाळ.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
२९.३.२०१२

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल