अळ्झ्याँ छौं-अळ्झ्याँ छौं,
जिंदगी का जाळ मा,
मन पराण पौन्छ्युं छ,
प्यारा कुमाऊँ-गढ़वाळ मा...
होलु बुरांश बणांग लगौणु,
मुल्क हमारा छयुं मौळ्यार,
पाखौं मा फ्योंलि फूलिं होलि,
मनख्यौं का मन मा होलु ऊलार,
ऋतु मौळ्यार की, धै लगौंदी,
आवा हे प्यारा पहाड़ मा,
ताल, बुग्याळ, बुरांश तैं देखा,
प्यारा मुल्क पहाड़ मा,
बानी बानी का फूल खिल्यां,
लगल्यौं अर झाड़ मा,
टक्क लगिं मन मा हमारा,
मन पराण पौन्छ्युं छ,
प्यारा कुमाऊँ-गढ़वाळ मा...
तू अर मैं,
दूर देश-परदेश मा,
अळ्झ्याँ छौं-अळ्झ्याँ छौं,
जिंदगी का जाळ मा,
टक्क लगिं मन मा हमारा,
मन पराण पौन्छ्युं छ,
प्यारा कुमाऊँ-गढ़वाळ मा...
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टिहरी गढ़वाळ.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
२९.३.२०१२
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Thursday, March 29, 2012
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