आज समय देणु छ,
सब्बि उत्तराखण्ड्यौं तैं,
देवभूमि सी दूर न भगा,
अपणा मन मा,
पहाड़ प्रेम जगा,
याद रखा एक दिन,
यनु बग्त भि आलु,
हर क्वी मन ही मन,
भौत पछ्तालु,
समय का साथ पहाड़ मा,
विकास की ज्योति जगलि,
जै रोजगार का खातिर,
जाणा छैं तुम दूर परदेश,
वाँकी बयार भि बगलि,
रिश्ता कायम रखा,
प्यारा पहाड़ सी,
अब समय की पुकार छ,
समय की "दस्तक" सुणा,
भाषा अर संस्कृति सी जुड़ा,
देवी देव्तौं कू मुल्क छ हमारू,
पहाड़ पराणु सी प्यारू.
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(रचना: स्वरचित एवं प्रकाशित,सर्वाधिकार सुरक्षित )
दिनांक: १६.३.२०१२
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Friday, March 16, 2012
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उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
भौत भलु भैजी!!!
ReplyDeleteभैजी म्यारी गढ़वाली कविताओं कु ब्लॉग मा आपकु हार्दिक स्वागत छ।
www.garhwalikavita.blogspot.com