देखा दौं चुचौं,कनि होणि छ,
तौं दुयौं मा,
हाँ बल, तौं दुयौं मा,
जू जीती अर हारी,
देखणा छैं तमाशु तुम,
तौंका,गौळा लगिं छ भारी,
नेता छन सोचण लग्यां,
तुम भी सोचा,कनुकै बणलि?
हे! उत्तराखण्ड की जनता प्यारी,
तुमारा विकास का खातिर,
साफ़ सुथरी सरकार तुमारी.....
क्वी त सुनिंद सेगिन,
कैका बितिं छ भारी,
जीत हैक्का की,कनु पचलि,
याछ भारी लाचारी,
कूड़ी पुंगड़ि धार लगैक,
कत्यौं की मति मरि,
मुक्क लुकैक सोचण लग्यां,
हे!हम्न यू क्या करि?
हमारा उत्तराखण्ड मा होंदि,
जोंखों की बड़ी शान,
बग्त की तुम मार देखा,
क्या ह्वैगी भगवान,
कै निर्भागिन करि होलु,
सोचा दौं भितरघात,
जैन भि करि,
कवि "जिज्ञासु" तैं,
जचणि निछ बात,
कथगा प्यारी होंदी हे,
उत्तराखण्ड की हवा-पाणी,
दुःख की बात एक हिछ,
वख मचिं छ "खैंचा ताणी".
-कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
विधान सभा चुनाव-२०१२ पर मेरी गढ़वाली कविता
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Wednesday, March 7, 2012
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