तेरी जग्वाळ मा,
दिन-दिन काटिन मैन,
अब तू यीं धरती मा,
हमारा देश अयुं छैं,
त्वै हेरि मन मा अब,
सकुन छ अर चैन...
बौळ्या बुरांश होलु,
बणाँग लगौणु,
कखि दूर,
लखि बखि बण मा,
मन मा उलार होलु,
बुरांश त्वै देखण मा,
कुतग्याळि सी लगणि होलि,
हर पर्वतजन का मन मा,
अपणा मुल्क या दूर देश,
तरसेणा भी होला,
मन ही मन मा,
हे! "प्यारा बसंत"...
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: २०.३.२०१२
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित )
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Tuesday, March 20, 2012
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स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
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उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
भौत अच्छी रचना सर।
ReplyDeleteमेरु ब्लाग "गढ़वाली कविता" मा आपकु हार्दिक स्वागत करदु।
http://garhwalikavita.blogspot.com/