मान्न लग्यां था रात मा,
मैंन पूछि कू होला?
बतौन्दारौन बताई,
बिचारौं की आत्मा,
भटकणि छन बल,
ज्यूंदा ज्यु,
किलैकि ऊंका मन की,
नि ह्रवै सकि,
हे राम! ऊ हिछन,
किलकणा रात मा.....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू,
दिनांक 5.4.2016
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