बिराणि भाषा अपनैक,
अपणि बोलि भाषा कू,
त्रिस्कार कतै न करा,
कथ्गा प्यारी छ हमारी,
पित्रु की विरासत,
जौंन हम तक पौंछाई,
कना ह्वैग्यन मनखि आज,
अपणि भाषा संस्कृति,
त्यागि तरस कतै नि आई....
बोलि भाषा सी हमारी,
कायम रन्दि पछाण,
जब तक बोलला हम,
उत्तराखण्डी का रुप मा,
हम्न जाणे जाण....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
दिनांक 11.2.2016
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